Book Title: Jain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Author(s): Hirabai Boradiya
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 9
________________ [६] जैन परम्परा में नारी के महत्त्व का विवरण प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के समय से ही मिलने लगता है । ब्राह्मी ने सर्वप्रथम भगवती दीक्षा ग्रहण कर न केवल साध्वियों का नेतृत्व किया । अपितु बाहुबली को प्रतिबोधित भी किया। माता मरुदेवी पुत्र स्नेह को त्याग कर केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्ध-बुद्ध हुईं । धर्म, कला एवं संस्कृति के इस प्रारम्भिक काल में नारी को — जो उच्च स्थान प्राप्त था - वह परवर्ती तीर्थंकरों के समय में भी यथावत् रहा । अनेकों भारतीय नारियों ने जैन साधना मार्ग को स्वीकार करके अपना आत्म कल्याण कर निर्वाण पद प्राप्त किया । नारी के इन धार्मिक अधिकारों में अनुक्रम से उत्तरोत्तर वृद्धि ही होती गई । उन्नीसवें तीर्थंकर मल्ली नारी थे - इस तथ्य को स्वीकार कर श्वेताम्बर जैन परम्परा ने तो नारी को आध्यात्मिक पूर्णता के सर्वोच्च पद पर स्थापित कर दिया । आध्यात्मिक जगत् में नारी को दिया गया यह सर्वोच्च सम्मान तथा चतुर्विध संघ में उनका श्रमणियों एवं श्राविकाओं का समान अधिकार यह द्योतित करता है कि जैन परम्परा में नारी को विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था । आगमिक और आगमेतर जैन साहित्य अध्ययन के माध्यम से विभिन्न महिमामयी नारियों, तपस्वियों, साध्वियों, गृहस्थ और विदुषी श्राविकाओं का श्रृंखलाबद्ध विस्तृत इतिहास प्रस्तुत करना ही इस शोध प्रबन्ध का अभीष्ट हैं । भारतीय धार्मिक परम्पराओं में नारी को कई रूपों में चित्रित किया गया है । वैदिक परम्परा नारी के पातिव्रत्य को अधिक महत्त्व देती है, उसमें नारी के लिए पुरुष की सहधर्मिणी बन, परछाईं की तरह उसके साथ चलने का निर्देश है। बौद्ध परम्परा नीति - प्रधान नारी जीवन को प्रोत्साहित करती है । जैन संस्कृति नारी जीवन में आध्यात्मिक भावना की ज्योति जगाकर उसे साधना के लिये अत्यन्त कर्तव्यशील और निष्ठावान बनाती है । जैन संस्कृति की उदार भावना के फलस्वरूप ही उसके धर्म संघ में साध्वियों एवं श्राविकाओं को क्रमशः साधु एवं श्रावकों के समान स्थान दिया गया । प्रागैतिहासिक काल की जैन साध्वियों एवं विदुषी महिलाओं का विवरण तीर्थंकरों की मातायें, पत्नियाँ और उनकी संतति के रूप में मिलता है । इन जैन विदुषियों का व्यक्तित्व और कृतित्व परखा जाय, तो यह प्रतीत होता है कि ये विदुषी महिलाएँ अपने व्यक्तित्व को तीर्थंकरों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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