Book Title: Jain Dharma Sar
Author(s): Sarva Seva Sangh Prakashan Rajghat Varanasi
Publisher: Sarva Seva Sangh Prakashan

Previous | Next

Page 3
________________ करके इसमें जो कुछ फरक करना है, वह फरक करके जैन-धर्म के अनुशासन के अनुसार अंतिम रूप देकर ४००-५०० वचनों में 'जैन-धर्म-सार' समाज के सामने रखेंगे। बहुत महत्त्व की बात है यह । एक बहुत बड़ा काम हो जायगा। जैसे हिन्दुओं की 'गीता' है, बौद्धों का 'धम्मपद' है, वैसे ही जन-धर्म का सार सबको मिल जायगा। बरसों तक भूदान के निमित्त भारतभर में मेरी पदयात्रा चली, जिसका एकमात्र उद्देश्य दिलों को जोड़ने का रहा है। बल्कि, मेरी जिन्दगी के कुल काम दिलों को जोड़ने के एकमात्र उद्देश्य से प्रेरित हैं । इस पुस्तक के प्रकाशन में भी वही प्रेरणा है । मैं आशा करता हूँ, परमात्मा की कृपा से वह सफल होगी। समर्पण ब्रह्म-विद्या मन्दिर, पवनार १-१२-७३ Area जिसके आलोक से यह आलोकित है, जिसकी प्रेरणाओं से यह ओतप्रोत है और जिसकी शक्ति से यह लिखा गया है, उसी के कर कमलों में सविनय समर्पित Jan Education Intematonal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 112