Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sampurnanand, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 8
________________ नकली थी। जैनोमें भी इस जोड़की कहावतें होगी। आज वह दिन ये। अब हमें दार्शनिक और उपासना सम्वन्धी वातीमें वैषम्य रखते ए एक दूसरेके प्रति सौहार्द रखना है। अपनी अपनी रुचिके अनुसार म चाहे जिस सम्प्रदायमें रहें परन्तु हमको यह ध्यानमें रखना है कि पिल, व्यास, शङ्कराचार्य, बुद्ध और महावीर प्रत्येक भारतीयके ए आदरास्पद है। और हमको सबसे ही ऐसी शिक्षा मिलती है जो मारे चरित्रको ऊपर उठाने और हमको नि श्रेयसके पथएर ले जानेमें मर्थ है। विशाख शु० १, । २००५ ) सम्पूर्णानन्द

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