________________
जैनधर्म
य. महावीरके वादका ही है, फिर भी उसमे जैनधर्मकी चर्चा होते हुए
महावीर या पार्श्वनाथका नाम तक नहीं पाया जाता। इससे भी सी वातकी पुष्टि होती है कि हिन्दू परम्परा भी इस विषयमे एक ज है कि जैनधर्मके संस्थापक ये दोनो नहीं है। नई इसके सिवा हम यह देखते है कि हिन्दू धर्मके अवतारोमे अन्य रारतीय धोंके पूज्य पुरुष भी सम्मिलित कर लिये गये है, यहाँ क्ल कि ईस्वी पूर्व छठी शताब्दीमे होने वाले बुद्धको भी उनमें आम्मिलित कर लिया गया है जो बौद्धधर्मके संस्थापक थे।किन्तु उन्हीके
मकालीन वर्धमान या महावीरको उसमें सम्मिलित नहीं किया है, खिोकि वे जैनधर्मके सस्थापक नही थे। जिन्हें हिन्दू परम्परा जैनधर्मका
स्थापक मानती थी वे श्रीऋषभदेव पहलेसे ही आठवे अवतार माने मए थे। यदि श्रीबुद्धकी तरह महावीर भी एक नये धर्मके संस्थापक ते तो यह सभव नहीं था कि उन्हें छोड़ दिया जाता। अत उनके गम्मलित न करने और ऋपभदेवके आठवे अवतार माने जानेसे भी जस बातका समर्थन होता है कि हिन्दू परम्परामे अति प्राचीनकालसे षभदेवको ही जैनधर्मके सस्थापकके रूपमें माना जाता है । यही जह है जो उनके तथा उनके वादमे होनेवाले मजितनाय और अरिप्टतिमि नामके तीर्थवरोका निर्देश यजुर्वेदमें मिलता है।
ऐतिहासिक सामग्री है इस प्रकार जैन और जैनेतर साहित्यसे यह स्पष्ट है कि भगवान पुषभदेव ही जैनधर्मके आद्य प्रवर्तक थे। प्राचीन शिलालेखोसे भी
ह बात प्रमाणित है कि श्रीऋषभदेव जैनधर्मके प्रथम तीर्थकर थे
और भगवान महावीर के समयमे भी ऋषभदेवकी मूर्तियोकी पूजा जैन “ोग करते थे। मथुराके कलाली नामक टीलेकी खुदाईमें डाक्टर हररको जोजैन शिलालेख प्राप्त हुए वे करीब दो हजार वर्ष प्राचीन और उनपर इन्डोसिथियन (Indo-sythjan ) राणा कनिष्क