Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sampurnanand, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 14
________________ - -- - - अहिंसा । बाँहसाणुव्रत ०कर्म सिद्धान्त ।। १३२१ १० अनुमतिविरत १९६ कर्म का स्वरूप । ११ उद्दिष्टविरत कर्म अपना फल कैसे देते है १३५ साधक श्रावक १९९ . कर्मके भेद १३८ । ६-श्रावक धर्म और विश्व • कर्मोकी भनेक दशाएं १४१ की समस्याए २०२ चारित्र १४४-२२९/७-मुनिका चारित्र २१० -ससारमे दुख क्यो है १४४ साधुको दिनचर्या २१६ - मुक्तिका मार्ग १४६ अगस्यान २२० चारित्र या आचार १५४ / ९-मोक्ष या सिद्धि /२२६ १५८ | १०-क्या जैनधर्म नास्तिक हर२८ गृहस्थती अहिंसा १६४ | ४ जनसाहित्य २३०-२४५ -श्रावकका चारित्र १७० दिगम्बर साहित्य २३१ १७१ श्वेताम्बर साहित्य २४० । रात्रिभोजन और जलगालन १७४ | ४-कुछ प्रसिद्ध जैनाचार्य २४५ सत्याणुमत 1--गौतम गणघर २४५ । अचौर्यागुनत भद्रवाहु । ब्रह्मचयांणुव्रत १७९ घरसेन परिग्रह परिमाणवत १८१ पुष्पदन्त और भूतवाल । बावकके भेद गुगधर पाक्षिक श्रावक १८४ कुन्दकुन्द निष्ठिक धावक उमास्वामी '१ दर्शनिक समन्तभद्र '२ प्रतिक १८७ सिद्धसेन ३ सामायिकी देवनन्दि । ४ प्रोपधोपवासी पात्रकेसरी ५ सचितविरत चकलंक ६ स्विामथुनविरत' १९४ विद्यानन्दि ७ ब्रह्मचारी माणिक्यनन्दि ८ आरम्भरित मनन्नवीर्य ९ परिग्रहविरत वीरसेन १७६ २४६ १९२ - - - -

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