________________
-
खण्ड] * जैनधर्मकी प्राचीनता * उल्लेख ही हैं । उदाहरणार्थं पुराणोंमेंसे कुछ लेख यहाँपर उद्धृत किये जाते हैं, वह इस प्रकार हैं। आज कल अठारह पुराणोंके नामसे जो-जो ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, उनमें भागवत का नाम सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इस पुराणकेलिये वैष्णव जनताके हृदय में जितना अादर है, उतना अन्य पुराणों के विषयमें नहीं। लोग इसकी कथा बड़ी ही श्रद्धासे सुनते हैं। इसमें जैनोंके परमादरणीय भगवान् ऋषभदेवका चरित्र बड़ी ही सुन्दरता और विस्तारमे वर्णन किया है। चरित्र यद्यपि जैन ग्रन्थों में उल्लेख किये गये ऋषभ-चरित से भिन्न है। ( वस्तुतः होना भी चाहिये ) क्योंकि भागवतके रचयिताने उन्हें विष्णु का अवतार मान कर उनका चरित्र वणन किया है, परन्तु है वह बड़ा मनोहर और शिक्षा-प्रद। उसमें भगवान ऋषभदेव के सुन्दर उपदेश और अनुकरणीय वैराग्यमय जीवनका चित्र बड़ा बूचीसे खींचा है। उक्त ग्रन्थ के पाँचवें स्कन्धमें चरितवर्णनके अनन्तर कुछ जैनधर्मका भी जिक्र किया है। जिक्र क्या, उसकी उत्पत्तिका उल्लेख किया है। उल्लेख बड़ा विचित्र है । अतः पाटकों के अवलोकनार्थ हम उसे यहाँ उद्धृत करते हैं:
'यम्य किलानुचरितमुपाकराय कोङ्कवेङ्ककूटकानां राजा अहं नामोपशिक्ष्य कलावधर्म उत्कृष्यमाणो भवितव्येन विमोहितः स्वधर्मपथमकुतोभयमपहाय कुपथपाखण्डमसमञ्जसं