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अंश उसके शब्दों में या अपने शब्दों में इस पुस्तकमें सेठजीने संग्रह किया है, उस उस अंशके नीचे मूल पुस्तक तथा मूल लेखकका नाम देकर पृष्ठ संख्या निर्दिष्ट की जाती तो शास्त्रीय तत्त्वोंकी व्याख्या के अधूरेपन पूरेपन की या गुण-दोष की या वर्णनशैलीको, जवाबदेही मूल लेखक के ऊपर रहती, और साथ ही वाचकोंमें उन मूल पुस्तकों के अवलोकनका थोड़ा-बहुत उत्साह भी जागृत होता । साथ ही साथ यह प्रस्तुत पुस्तक कितनी पुस्तकोंक अवलोकनका परिणाम है, यह भी ज्ञात हो जाता । यदि सेठजीके पास कोई जेल अभ्यासके समय की यादी हो, तो उसके आधार से परिशिष्ट द्वारा यह कमो दूर की जा सकती है ।
जैन युवकों का खास कर व्यापारी और साधन प्राप्त युवकों का सेठजी के धार्मिक और राष्ट्रीय उत्साहकी ओर ध्यान खींचना चाहता हूँ । जिससे वे अपने समय, शक्ति और धनका सदुपयोग करें।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय
२५-१-३४
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सुखलाल