________________
इस विचारसे उन्होंने अपने अभ्यामका फल वाचकोंके समक्ष प्रकट करनेका प्रयत्न किया है, जो आदर-पात्र है।
इस पुस्तकका जो नाम रक्खा गया है, वह सेठजीकी वृत्ति और प्रवृत्तिका द्योतक है। उनका दावा यह नहीं है कि मैंने प्रत्येक वस्तुपर आवश्यक चिन्तन या गहग मनन किया है, अथवा प्रत्येक मुद्दे का स्वतन्त्र परीक्षण किया है। उनका दावा यदि है, तो मेरी दृष्टिमे इतना ही जान पड़ता है कि मैंने जेलवामके ममय जैन-शास्त्रों को जो कुछ समझा, जो कुछ पढ़ पाया
और उनमेंमें जो कुछ भार इस परिमित समयमें निकाल सका, वह इस पुस्तक में है। और यह दावा ठीक भी है। क्योंकि शास्त्रीय सम्भीर चिन्तन और स्वरन्त्र परीक्षण कभी अल्प परमय में सिद्ध हो नहीं सकते।
इम पुस्तक के अवलोकनसे एक छाप यह पढ़ती है कि सेठजीको जेल में दिगम्बर-मादित्य और दिगम्बर-इतिहासकी पुस्तक पढ्नेको कम मिली. या उन्हें पढ़नका समय न रहा। यह भी मालूम होता है कि उन्हें अँगरेजी और गुजगतीकी दुछ महत्त्व पूर्ण पुस्तके प्राप्त नहीं हुई, अन्यथा जो दक्षिण हिन्दुस्तानके दिगम्बर गजा, मन्त्री और त्यागी वर्ग तथा उनके माहित्यके वर्णनकी कमी रह गई है, वह न रहती। परन्तु सम्भव है-वह . तथा अन्य सब कमियाँ दूसरे संस्करण में दूर हो जाएंगी।
अन्त में मैं एक सूचना कर देना योग्य समझता हूँ। वह यह कि जिस-जिस लेखककी जिस-जिस पुस्तकको पढ़कर जो-जो