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मैं आप लोगों को ऐसे ही संदेश देना चाहता हूँ, उन संदेशों का संवाहक बनाना चाहता हूँ, जिन संदेशों से आप अपनी कायरता को पहचान सकें, बुज़दिली का बोध पा सकें, जीवन में फिर एक बार क्षत्रियत्व जाग सके, व्यक्ति-व्यक्ति अर्जुन बन सके। आप चाहे ब्राह्मण हों, वैश्य हों या चाहे जिस जाति के हों, क्षत्रियत्व जागना जरूरी है ।
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जब भी किसी जिन और विश्व - विजेता का जन्म होगा, तो क्षत्रियत्व का जन्म होना ज़रूरी है । जैनों के सारे तीर्थंकर क्षत्रिय ही थे। जब महावीर किसी ब्राह्मणी की कोख से जन्म लेने वाले थे, तो इन्द्र का आसन भी कंपायमान हो उठा । एक तीर्थंकर ब्राह्मणी की कोख से जन्म ले रहा था, यह अपूर्व प्रसंग था । तीर्थंकर ब्राह्मण के घर जन्म नहीं ले सकता और न वैश्य के घर ही । ब्राह्मण आदमी जोखिम नहीं उठा सकता और वैश्य व्यक्ति साहस नहीं कर सकता है । ये सब तो क्षत्रिय ही कर सकता है। राजपूताने की माटी जगे । वैश्य तो पहले सोचेगा कि इसमें नफ़ा है या नुक़सान । क्षत्रिय आदमी यह व्यवसाय नहीं करता । उसके लिए तो जीवन एक युद्ध है। इसी कारण महावीर को ब्राह्मणी की कुक्षी क्षत्राणी की कुक्षी में लाया गया ।
महायुद्ध को जीतने के लिए संकल्प चाहिये, जोश और क्षत्रियत्व चाहिये । तभी महासमर को पार कर सकते हो। फिर से जगे पुरुषों में कोई महाराणा, कोई शिवा और कोई सुभाष, फिर से जगे नारी में कोई लक्ष्मीबाई । पर बाहर के युद्ध के लिए नहीं, भीतर के युद्ध के लिए, भीतर के महासमर को जीतने के लिए वीरत्व चाहिये । महावीरत्व, ऐसा महावीरत्व जैसा महावीर ने कहा, जिससे वे जीत सके खुद को, संसार के हृदय को ।
देखो, तुम्हारी स्थिति कैसी बनी हुई है ? ठीक वैसी ही, जैसी अर्जुन की थी, जब उसने युद्ध-भूमि में अपने सामने अपने ही सगे-संबंधियों को खड़े पाया । महाभारत, फिर भी सुस्त, ढीले-ढाले ! तुम्हारे लिए ही गीता का आह्वान हो रहा है; गीता के सूत्रों पर प्रकाश डाल रहा हूँ । सच में गीता को जन्म लेना होगा, पर उससे पहले तुम्हें भी एक नया जन्म लेना होगा, एक पुनर्जन्म स्वीकार करना होगा, ऐसा जन्म कि हम अपने जीवन को पुनः गढ़ सकें, उसका उद्धार कर सकें । गीता पहले अर्जुन के लिए जन्मी थी, अब उसे व्यक्ति-व्यक्ति से जुड़ना है, व्यक्ति-व्यक्ति के हृदय में साकार होना है। यह मत सोचना कि गीता जन्म ले
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गीता का पुनर्जन्म | 5
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