Book Title: Jago Mere Parth
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 13
________________ की । गीता निश्चित तौर पर योद्धाओं का मार्ग है । जब तक तुम स्वयं योद्धा नहीं बनते हो, तब तक गीता को सुनना सार्थक कहाँ है ! गीता को सुनना है, तो रग-रग में, नस-नस में योद्धा का स्वर चाहिये । ऐसे क्षत्रियत्व का रक्त चाहिये, जिस पर गीता के ये संदेश प्रभावी हो सकें। राजस्थान की यह माटी कितनी ही शान्त क्यों न हो, पर जब-जब भी यह माटी जागती है, तब-तब राजस्थान रणबांकुरों की धरती बन जाता है । मैं चाहता हूँ कि रणबांकुरों की यह धरती औरों से लड़ने के लिए नहीं, वरन औरों का दिल जीतने के लिए आगे आये। मैं एक ऐसे युद्ध की प्रेरणा दे रहा हूँ, जो हिंसा का नहीं, स्वयं हिंसा से लड़ने का युद्ध है-जो आतंक या अपराध का युद्ध नहीं, स्वयं अपराध और आतंक से लड़ने का युद्ध है । एक ऐसा युद्ध जो अयुद्ध का वातावरण बनाए । तुम्हें अरिहंत बनाए। __मानव-जाति आज अपने से ही पलायन करती जा रही है; मुझे उसी मानवजाति को संबोधित करना है । इसलिए मुझे सुनार और लुहार दोनों का काम करना होगा। मुझे तो वह मंगल-कलश निर्मित करना है, जिसको कि सारी दुनिया अपने शीश पर उठा सके और फिर-फिर किसी भगवान बाहुबली का अभिषेक कर सके । इस मंगल-कलश को बनाने के लिए मुझे जहाँ माटी को हाथ का सहारा देना होगा, वहीं ऊपर से उसकी पिटाई भी करनी होगी । केवल प्यार से घड़े नहीं बनते, केवल दुलार से जीवन नहीं बनता, योद्धा का स्वर चाहिये, विजय की संकल्प-शक्ति चाहिये। अच्छा होगा मुझे अपने अन्तःकरण तक आने दें-भीतर के कुरुक्षेत्र में, जहाँ महाभारत जारी है। मुझे याद है एक संत को बीसवीं बार न्यायालय द्वारा छः माह के कारावास की सजा सुनाई गई। एक संत और बीस-बीस बार जेल की हवा खाए, यह घोर आश्चर्य की बात थी । न्यायाधीश भी चकित था। न्यायाधीश ने संत से कहा कि एक संतवेशधारी जेल में जाये, यह मझे बर्दाश्त नहीं होता । आप अपनी आवश्यकताएँ मुझे बताएँ, ताकि मैं उन्हें पूरा कर सकुँ । संत ने मृदुल मुस्कान के साथ कहा-मैं चोरी स्वयं के लिए नहीं करता। मैं तो चोरी इसलिए करता हूँ, ताकि बार-बार जेल जा सकू और वहाँ बंद पड़े कैदियों को उस संदेश का स्वामी बना सकूँ, जिससे वे अपने बंधनों को, तमस को नीचे गिरा सकें। 4 | जागो मेरे पार्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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