Book Title: Jago Mere Parth Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha FoundationPage 12
________________ कृष्ण के दर्शन नहीं होंगे। अर्जुन का जन्म होने से ही कृष्ण का जन्म होता है। ठीक वैसे ही जैसे बच्चे के जन्मने से माँ की छाती में दूध उत्पन्न होता है । मुझे लगता है कृष्ण फिर-फिर जन्म ले रहे हैं । अगर चूक हो रही है, तो अर्जुन को पैदा होने में चूक हो रही है। __कृष्ण ने गीता का बखान युद्ध के मैदान में किया और उस धुरंधर से किया, जिसकी प्रत्यंचा मात्र से सारा संसार कंपित हो जाता था। महाभारत का समय तो अब नहीं है । संदर्भ भले ही बदल गये हों, लेकिन हर शख्स के भीतर महाभारत होते मैं साफ-साफ देख रहा हूँ । सबके भीतर महाभारत मचा हआ है, उथल-पुथल है। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता । हर व्यक्ति के भीतर एक रावण बैठा है, जो सीता का अपहरण करना चाहता है; एक दुर्योधन द्रोपदी का चीरहरण करना चाहता है; एक कंस केवल अपनी रक्षा और समृद्धि के लिए औरों के साथ खिलवाड़ करता है; एक शिशुपाल अपने स्वाभिमान, अपने घमंड को औरों पर छांटने के लिए उनकी उपेक्षा कर रहा है । गीता की सार्थकता इसी में है कि आप अपने भीतर के महाभारत को पहचानें। त्रेता के राम की आँखों में, आँसू का निर्झर पलता था। सीता का आंचल इसीलिए, करुणा से भीगा लगता था । सारा द्वापर ही उलझ गया, नारी के बिखरे बालों में। ज्योति तो कम पर धुआं बहुत, उठता था जली मशालों में ॥ त्रेता और द्वापर यग के वे घटनाक्रम आज भी दोहराए जा रहे हैं। हम सबके भीतर एक शैतान, एक दुःशासन बैठा है, जो औरों की इज्जत लेने में ही अपनी प्रतिष्ठा समझता है, एक शकुनि आसीन है, जो स्वार्थ, छल, प्रपंच के दुश्चक्र चला रहा है । इसलिए गीता की प्रासंगिकता आज भी है । भविष्य में भी रहेगी। तब तक, जब तक मनुष्य के भीतर स्वार्थ के शकुनि और दुश्चक्र के दुर्योधन बने रहेंगे। गीता तुम्हें लड़ने की बात सिखाती है, स्वार्थ और दुश्चक्र से युद्ध करने गीता का पुनर्जन्म | 3 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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