Book Title: Indological Studies
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Parshva Prakashan
________________
The Apabhramṁśa Passages of Abhinavagupta
X, XI, XII
पहिण उभाहरभावकलपुणु अब्भन्तरि एह । सच्चिवपसम इपुणुजअल रब्भहिनिद्दकलेह |
संवेण पअरूढ इउभावकला उसमग्गु भरिअद्दसुस्सुहुपुणुभरिउ ।। १ ।।
तुरणन्तर लग्गु
घडुबो हिजोअसिएह ।
वितत्त समत्थफुरणकमेण कमेणलिहालमिसाणमिवञ्चावतु ॥ २ ॥ ( 9. 1 2, 3)
1
(X) पहिलउ बाहिर भाव-कल सच्चिय समइ पुणु सअल [प्रथमं बाह्य-भाव-कला पुनः अभ्यन्तरे एषा । सा एव प्रशमति पुनः सकला x x x कलयत ]
(XI) संवेअण-पअ-रूढ इउ
भाव-कलाउ समग्गु । भरिअ सम्मुहु (?) पुणु भरिउ तुरिआणंतरु लग्गु ॥ [ संवेदन-पद-रूढः अयम् भाव-कलापः समग्रः । म्रियते संमुखं (?) पुनः भृतः तुरियानन्तरं लग्नः ॥ ]
पुणु अब्भंतरि एह । इब्भिहि (?) निद्द कलेह ||
(XII) घडु बोहिण हउं जोअमि एहु वितत्तु समत्थु । फुरण क्रमेण णिहालमि माणमि पंचावतु ||
[xx बोधेन अहम् पश्यामि एतत् तत्त्वम् समस्तम् । स्फुरण क्रमेण निभालयाभि मानयामि पञ्चावर्तम् ॥ ]
जह
पसरु अत्ति विपर
XIII
महेसरु अच्छवि संविरवितहू ।
जह निअ रूउ महेसरउ
तह पुणु अडिवि पर - पसरु
पसरु अच्छ इविमल सरूइ || ( 11.1)
अच्छइ संवरिवि (?) ।
अच्छइ विमल-सरूइ ॥
281.
[ यथा निज-रूपम् महेश्वरः आस्ते संवृत्य ।
तथा पुनः प्रकटयित्वा पर- प्रसरः आस्ते विमल - स्वरूपे । ]
Page Navigation
1 ... 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376