Book Title: Indological Studies
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Parshva Prakashan

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Page 299
________________ The Apabhra mía Passages of Abhinavagupta 289 पहिलउ फुरइ फुरणु अविआरिण होइ परावर-अवर-विहाइण देवि विमरिसई रूउ । (सा) स चिअ परिमरिसेई सरुअउ देउ विलोअइ भईरख-रूअउ उत्तरु एहु अणुरूउ(?) || [प्रथमं स्फुरति स्फुरणम् अविकारेण भवति पराईरापरा-विभागेन देवी विमर्शयति रूपम् । सा एब परिमर्शयति स्वरूपम् देवम् विलोकते भैरव-रूपम् उत्तर एषः अनुरूपः॥] सअल बहुसंवेअणफुरितमत्त उजहित हिंचि अजत्तो हित्तउपफुर । इज कुट्टि उस अलभाव संवेअणरअणणिहाणुइउ ॥ परिआणहुएत्तिअणुतुरुछत्तुहजसउसम्मूढतुणिअच्छहतुहअत्तासिअऊउऊउसुबाहिरबितुरहुबन्धुणमोक्खतउइरिअवहुविकुणसिबिसग्गुणिसमिद्रउपुणसंहरसिज्जितिपविष्णुविरिञ्चरुद्रमअलक्खहिमसरणिरोहचिन्तइमलक्खएक्कवाअपरिआणहुअत्ताणउपरमत्थअण्णुणकोइबिआसुबहुइउसअलउसस्थत्थ । (p. 93) सअल-वत्थु-संवेअण फुरिअ-मत्त जहिं xx ___xx xx तहिं चिअ जत्तोहुंतिउ पफुरई ज कुट्टिउ (१)। सअल-भाव-संवेअण-रअण-णिहाणु इउ परिआणहु एत्तिअणुतुरुछन्तुहजसठ्ठ ॥ (१) सम्मूढत्तणि अच्छह तुह अत्तासिउ रूउ रूउ सुबाहिर वितुरहु (?) बंधु ण मोक्खु तउ । xx इरिअवहु वि कुणसि विसग्गु(१) णिमिसद्धउ पुणु संहरसि(ज्जिति) ॥ (२) 19

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