Book Title: Indological Studies
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Parshva Prakashan

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Page 300
________________ 290 Prakrit and Apabhramsa Studies पविण्हु विरिंच-रुद्द-सअ-लक्ख हिम-सर-णिरोहु चितइ सलक्ख । (३) एक्क-वाअ परिआणहु (?) अत्ताणउ परमत्थु । अण्णु ण कोई विआसु बहु इउ सअलउ सत्थत्थु । (४) सइपरिउण्णपमरुउत्ताण उत्तहुगहिअबुणभज्जिइ । अजाणिअविहडइअज्जाण उजम्पुसुअच्छइपूरिअकज्ज ॥ (p. 112) सइ-परिउण्ण-पसरु अत्ताणउ तहु गहिअव्वु ण भज्जिअ णिज्जु (?) । इअ जइणिअ विहडइ अण्णाणउ जम्मु सु अच्छइ पूरिअ-कज्जु ॥ [सदा-परिपूर्ण-प्रसरः आत्मा तस्य गृहीतव्यं न xxxx इति ज्ञात्वा विघटते अज्ञानं जन्म सः(१) भवति पूरित-कार्यः ।। VI परसंवेअणाभासमऊइणाऊरअरमहसोआइमऊणसइभासइम अलाहि शरणिअपसरह परिसरिसन जतुहसो पश्चअप हिलुअवर्ण परिगाहरु इर वसत्तिपधमहस्म ओहभितुर कदसुख विसरिपि असिद्धि धराइम उस अल विपरिसि अभासइ वाहिरविहरिणी एहि विसर्गाभू मि अनार्दहुक्तइ लर्थ ईण पवि मिण दहुअमलाहं विहरिणी कुइलित्थत अणुत्तर परपइ जश्चि अभवि अतत तचमप्पइ भस्मइवि बिन्दुविसरि सुताए हुप आसत्त तअह सत्तमल हिंपुविसि विभेत विहंसः तमालि निमाइ अअह सुततस्मह भोअममण अइलं मरु नि ऊ अपारहमरल पदुद्यो प्रन्तीप सारइमात द्वय भासि वलिअिनु सोश्रिअ असि तमर्थ अहिंसा अइपविमन्ती अलसइरसा मच्छेअरि परिदेवितरंगणि प्रफऊअसुह सारंणिणि रितत्तस्म कीलालसा तुहि मत्तिदिविरह एणि हानुण पिज्जति जतस्माइ लालणमहो संम. अलालसा । (p. 216-217) The word divisions in the above passage, faithfully reproduced from the printed edition are absolutely arbitrary and meaningless. Some of the gross errors that have resulted from misreading of letters are obvious. But it has not been possible to make out the verbal structure of most of the passage, and hence I have reproduced it herc mechanically without suggesting any corrections. Even so on the basis of a few clues we may hazard some guess about its metrical structure. The text up to 38 373 in the third line may be rearranged with slight corrections as under:

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