Book Title: Gyandipika arthat Jaindyot
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Maherchand Lakshmandas

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Page 6
________________ [ २ ] | অস্ততি। शुद्धि ९२ ९५ १०५ १०६ ११० ११२ ११३ v mva anar a do मंद कहां से चलो मटुंवां . ब्रह्मचारी॥ जहा का सडाय (सा) भूद कहां चली मढेवा ब्रह्मचारी ॥ यथा जहां का स्वाध्याय । सो) રરર १२९ काठ क्षमया कहना वततो पूछ कार क्षमाया कहाना बनती विचारे चैतन्य का योनियों १३७ विचार १३९ १४० चैतन्य १४० १५ योनि १४८ मरने डरते दसवै १४९ सदवे १५३ नहीं ॥ ५ ॥ नहीं अथवा इसका यह भी अर्थ है कि (मदार मंत मेए) मित्र वन के भेद करना याने दगा करना॥५॥ भोग की अभय भोग अन्नय

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