Book Title: Gyan Pradipika Author(s): Ramvyas Pandey Publisher: Nirmalkumar Jain View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ख ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाता है । इस विद्या को अंग्रेजी में Palmispy अथवा Chiromaney कहते हैं । मुख्यतया हस्ताङ्कित रेखादि देख कर ही इस शास्त्र के द्वारा शुभाशुभ फलों का निर्देश किया जाता है । विद्वानों ने सामुद्रिक शास्त्र को अधिक महत्व क्यों दिया है, इसका खुलासा नीचे किया जाता है । देख सकता है । यद्यपि शरीर के प्रत्येक अङ्ग में शुभाशुभबोधक चिह्न विद्यमान हैं । किन्तु वे चिह्न विशेष रूप से स्पष्ट हथेली में ही पाये जाते हैं । स्वभावतः हस्त का विशेष महत्व देने का हेतु एक और भी है। हमारे सभी काम हाथ से ही होते हैं। मंगल और अमङ्गल कार्यो का करनेवाला यहो है । अतः इसो हाथ पर शुभाशुभ चिह्नों का चित्रण करना उपयुक्त हो है । इसके साथ २ एक ओर भो बात है, अगर मनुष्य में इस विद्या का ज्ञान और अनुभव हा वह अपना हाथ स्वयं अन्य अंग को अपेक्षा आसानी से यह कार्य अन्य किसी अङ्ग से सुलभ नहीं हो सकता। इसी से हस्त को रेखा परिज्ञान के लिये विशेष स्थान प्राप्त है। विद्वानां का मत है कि इसके आविष्कारक हाने का सोभाग्य भारत को ही प्राप्त है। यहां से चोन ओर ग्रीक में इस विद्या का प्रचार हुआ। पश्चात् ग्रीक से यारप के अन्यान्य भागों में यह विद्या फैली । ऐतिहासिक विद्वानों का यह भी अनुमान है कि ईसा के लगभग ३००० वर्ष पूर्व चीन में एवं २००० वर्ष पूर्व ग्रीक में इसका प्रचार हुआ। अतः निर्भ्रान्तरूप से यह जाना जा सकता है कि भारत में इसके पहले से ही इसका प्रचार रहा होगा। हाथ में जितनो ही कम रेखायें हागी और हाथ साफ रहेगा वह पुरुष उतना ही अधिक भाग्यशाली समझा जाता है । हथैली के प्रधानतः सात रेखाओं पर हा विचार हाता है । (१) पितृरेखा (२) मातृरेखा (३) आयूरेखा (४) भाग्यरेखा (५) चन्द्ररेखा (६) स्वास्थ्य रेखा और ( ७ ) धनरेखा । इनमें आदि के चार प्रधान हैं। इनके अतिरिक्त सन्तान, शत्रु, मित्र, धर्म, अधर्म आदि और भी कई रेखायें होती हैं । अस्तु इस विषय को यहां अधिक बढ़ाना अप्रासंगिक होगा । अब मुझे यहां पर यह विचार करना है कि ग्रहों के शुभाशुभ फलकथन के सम्बन्ध में लोगों की क्या धारणा है। वैज्ञानिकों का कथन है कि मनुष्य अपने अपने कर्मानुसार ही समय समय पर सुखी या दुःखी हुआ करते हैं। उनके उस सुख-दुःख में सूर्य चन्द्रादि खगाल के ग्रह कारण नहीं हैं। हाँ, ग्रहों की स्थिति के अनुसार प्राणियों के भावी कल्याण या अकल्याण का अनुमान किया जा सकता है। ग्रहों के अनुसार भविष्य में विपत्ति की सम्भावना होने पर उसको दूर करने के लिये शान्ति का अनुष्ठान करने से प्राणियों को फिर उस विपत्ति का प्रास नहीं होना पड़ता आदि । तु, वैज्ञानिकi का ग्रहफलसम्बन्धी यह मन्तव्य जैनधर्म के प्रहफलसम्बन्धी मन्तव्यों For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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