Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवपिणो टी०अ० १४ तेतलिपुत्रप्रधानचरितवर्णनम् पोट्टिला दारिका स्नता सर्वालङ्कारभृपिता 'सोय' शिरिका दूरोहयति प्रारोहयति, दूरोह्य-भारोह्य मित्तणाइ सपरिचुडे' मित्रज्ञाति सपरिटत =मिरजाति स्वजनसन्धिप रिवेष्टितः, सर्वान् वैवाहिकान् मभारान्-विवाहसस्कारोचित सामग्रीन गृहीत्या सकाद् गृहात् मतिनिष्क्राम्यति, प्रतिनिष्क्रम्य 'सन्विट्टीए सद्धिया सर्वकारिकया ऋदया सह 'तेयलिपुर' तेतलीपुरम्य म-यम येन निर्गच्छन् यो तेतले ह तय उपा गच्छति, उपागत्य पोहिला दारिमा तेतलिपुत्राय स्वयमेव भार्याचेन ददाति । तत ग्वलु तेतलिपुत्रोऽमात्य. पोटिला दारिका समात्वेिन 'उषणीय ' उपनीपोटिल दारिय हाय सचालकारविभूमिय मीय दुम्बर) शुभ तिथि नक्षत्र, मुहर्त में पोटिला दारिको को स्नान करा कर समस्त अलकारों से विभूपित किया और विभूपित कर के फिर उसे शिविका पर बैठा दिया-(दुरूहित्ता मित्त गाड सपरिवुडे सातो गिहाओ पडिनिस्वमइ, पडिनिक्खमित्ता सविडीए तेयली पुर मज्न मज्झे ण जेणेव तेयलिस्त गिहे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता पोटिल दारिय तेयलिपुत्तस्स सयमेव भारियत्ताए दलयइ ) बैठा कर फिर वह मित्र, जाति, स्वजन, सरन्धी परिजनों से परिवेष्टित होकर एव वैवाहिक समस्त सामग्री को लेकर अपने घर से निकला । निकल कर सर्व प्रकार की अपनी ऋद्वि के साथ तेतलि पुर के बीच से होता हुआ जहा तेतलि का घर था वहा पहुँचा। वहा पर च कर उसने अपनी पुत्री पोहिला दारिका को तेतलि पुत्र को अपने आप से भार्या रूप से प्रदान कर दी । (तरण
(सोहणसि तिहिनरखत्तमुहुत्त सि पोट्टिल दारिय हाय सबाट कार, भूसिय सीय दुरुहइ)
શુભ તિથિ નક્ષત્ર, મુહુર્તામા પિફ્રિલા દારિકાને સ્નાન કરાવીને બધી જાતના અલકારથી બણગારીને તેને પાણીમાં બેસાડી દીધી
(दुरुहिता मित्तणाइसपरिसुडे सातो गिठाओ पडि निक्खमद, पडिनिक्ख मित्ता सबिडीए तेयलीपुर मज्झ मज्झेण जेणे तेयलिस्म गिहे तेणे उवागच्छइ, उवागरिउत्ता पोट्टिल दारिंग तेयलिपुत्तस्स सयमेव भारियत्ता दलयइ )
બેસાડીને તે પિતાના મિત્ર, જ્ઞાતિ, સ્વજન, સ બ ધી અને પરિજનેની સાથે લગ્નની બધી સાધન સામગ્રી લઈને વેરથી નીકળે નીકળીને તે સર્વ પ્રકારની પિતાની કઢિની સાથે તેતલિપરની વચ્ચે થઈને જ્યા તેતલિંક ઘર