Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 8
________________ . समाधान - नौ ज्ञातों (उदाहरण) की जो आख्याइका आदि की संख्या बतलाई गयी है। ऐसी ही आख्याइकाएं आदि दस धर्मकथाओं में भी हैं। इसलिए दस धर्म कथाओं में कही हुई आख्याइका आदि की संख्या में से नव ज्ञात में कही हुई आख्याइका आदि की संख्या को कम करके अपुनरुक्त आख्याइका आदि बचती हैं उनकी संख्या साढ़े तीन करोड़ (३५००००००) ही होती है। इस प्रकार पुनरुक्ति दोष से वर्जित आख्याइका आदि की संख्या का कथन मूल में - “एवमेव सपुव्वावरेणं अद्भुट्ठाओ अक्खाइयाकोडीओ भवंतीति मक्खाओ" - साढ़े तीन करोड़ किया गया है। . वर्तमान में जो दूसरा श्रुतस्कन्ध उपलब्ध होता है उसमें धर्मकथाओं के द्वारा धर्म का स्वरूप बतलाया गया है। इसमें दस वर्ग हैं। तेईसवें तीर्थंकर पुरुषादानीय भगवान् पार्श्वनाथ के पास दीक्षा ली हुई २०६ आर्यिकाओं (साध्वियों) का वर्णन है। वे सब चारित्र की विराधक बन गयी थी। अन्तिम समय में उसकी आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही काल धर्म प्राप्त हो गयी। भवनपतियों के उत्तर और दक्षिण के बीस इन्द्रों के तथा वाणव्यंतर देवों के दक्षिण और उत्तर दिशा के बत्तीस इन्द्रों की एवं चन्द्र, सूर्य, प्रथम देवलोक के इन्द्र सौधर्मेन्द (शंकेन्द्र) तथा दूसरे देवलोक के इन्द्र ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियाँ हुई हैं। वहाँ से चव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो जायेंगी। ___आगम साहित्य में यद्यपि अंतगडदसा, अनुत्तरोववाइय सूत्र तथा विपाक सूत्र आदि अंग भी कथात्मक है तथापि इन सब अंगों की अपेक्षा ज्ञातधर्म कथांग सूत्र का अपना विशिष्ट स्थान है। इसका अनुभव पाठक वर्ग स्वयं इसके पारायण से कर सकेंगे। इसके दो श्रुत स्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध में उन्नीस अध्ययन हैं और द्वितीय श्रुतस्कन्ध में दस वर्ग हैं जिस में तीर्थंकर प्रभु पार्श्वनाथ के पास दीक्षित २०६ साध्वियों का वर्णन है जो चारित्र विराधक होने से विभिन्न देवलोक में देवी के रूप में उत्पन्न हुई। .. जीव के आध्यात्मिक उत्थान में धर्म तत्त्व के गंभीर रहस्यों को समझने के लिए कथा साहित्य बहुत ही उपयोगी है। कथानकों के माध्यम से दुरुह से दुरुह विषय भी आसानी से समझ में आ जाता है। जैन आगम साहित्य में जितना महत्त्व द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, चरणकरणानुयोग का है उतना ही महत्त्व धर्मकथानुयोग साहित्य का भी है। प्रस्तुत आगम में जिन मूल एवं अवान्तर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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