Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

Previous | Next

Page 7
________________ अक्षर हैं यावत् चरणसत्तरि करणसत्तरि की प्ररूपणा से कथन किया गया है। यह ज्ञाताधर्मकथासूत्र का संक्षिप्त विषय वर्णन है। विवेचन - ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र में दो श्रुतस्कन्ध हैं। पहले श्रुतस्कन्ध के उन्नीस अध्ययन हैं। उनको ज्ञात अध्ययन कहते हैं। इनमें से दस अध्ययन ज्ञात (उदाहरण) रूप हैं। अतः इनमें आख्याइका (कथा के अन्तर्गत कथा) संभव नहीं है। बाकी के नौ अध्ययनों में से प्रत्येक में ५४०-५४० आख्याइकाएं हैं। इनमें भी एक-एक आख्याइका में ५००-५०० उपाख्याइकाएं हैं। इन उपाख्याइकाओं में भी एक एक उपाख्याइका में ५००-५०० आख्याइकाएं-उपाख्याइकाएं हैं। इस प्रकार इनकी कुल संख्या एक अरब इक्कीस करोड़ और पचास लाख (१२१५००००००) इतनी हो जाती है। जैसा कि गाथा में कहा है - एगवीसंकोडिसयं, लक्खापण्णासमेव बोद्धव्वा। एवं ठिए समाणे, अहिगयसुत्तस्स पत्थारा॥ एकविंशं कोटिशतं लक्षाः पञ्चाशदेव बोद्धव्याः। एवं स्थिते सति अधिकृत सूत्रस्य प्रस्तारः॥ इस प्रकार नौ अध्ययनों का विस्तार कहे जाने पर अधिकृत इस सूत्र का विस्तार वर्णित हो जाता है। यद्यपि 'ज्ञात' इस स्वरूप वाले नौ अध्ययनों की आख्याइका आदि की संख्या मूल में उपलब्ध नहीं है तो भी वृद्ध परम्परा में यह प्रचलित है। इसलिए. यहाँ लिख दी गयी हैं। इससे जिज्ञासुओं के ज्ञान में वृद्धि होने की संभावना है। दूसरे श्रुतस्कन्ध में जो अहिंसादि रूप धर्म कथाओं के दस वर्ग (समूह) हैं। उनमें एक-एक धर्मकथा में ५००-५०० आख्याइकाएँ हैं। एक-एक आख्याइका में ५००-५०० उपाख्याइकाएं हैं। एक-एक उपाख्याइका में ५००-५०० आख्याइकाउपाख्याइकाएं हैं। इस प्रकार पूर्वापर की संयोजना करने पर तीन करोड़ पचास लाख (३५००००००) आख्याइकाओं की संख्या हो जाती है। शंका - धर्म कथाओं में इन आख्याइका, उपाख्याइका, आख्याइकाउपाख्याइका इन तीनों की संख्या एक अरब पच्चीस करोंड़ पचास लाख (१२५५००००००) होती है तो फिर यहाँ , सूत्रकार ने इनकी संख्या तीन करोड़ पचास लाख ही क्यों कही है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 466