Book Title: Girnar Galp
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Hansvijayji Free Jain Library

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Page 6
________________ जातो पण पूर्व पून्यनी उर्दये वेन्नै भाइ नौ ज्ञानाभ्यात वृद्धि पामया लाग्यो अने"मापिदेशिका-अमरकोष विमेरे संस्कृत अभ्यास कर्यो. पूर्वभवमा" ज्ञान प्राप्त थयु होय तो आ भवी पण ज्ञान संस्कार चालु रहेवार्थी अल्पप्रयास ज्ञानाभ्यास धनी शके छ तेमे बने. भाइओए अल्पपयांसे। संसृत ज्ञान प्राप्त कयु. पितांत्री शाह नाविक पिताश्रीज हिता जैथी बन्न पुत्री ज्ञानशाली होकायों पत्तिबोध पानी चारित्र अंगीकार करे तो हम ना आत्मन अने पर पंग कल्याण करी महा उपकार करनार थायें एम इच्छता.... . माना जमना बाई पोतानी पुत्रीने भाग्यशाली, ज्ञानशाळोजागी आनंदयग्न रहेता घरमा समदि, अनुकूळ अने भाग्यशाली धुओं अने रुपवाम गुणीयल बहुआना मरखा संयोगथी माता जर्मनाबाई धर्मनो अतुल्य प्रभाव मानी विशेष धनीष्टपणे वर्तता हता. · वळी काळनो गनि विचित्र होवायों मुखनिमग्न जीर। नी इयर्या करमार काळे मैणिलाल रो" वहु मागे आलोक मुम्ब हरों लोधु अर्थात् माणेकचाइ देवगत थयां: आवरखने मंगिलालने परण्ये३ वर्षथयां 'हता. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unmanay. Suratagyanbhandar.com

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