Book Title: Girnar Galp Author(s): Lalitvijay Publisher: Hansvijayji Free Jain Library View full book textPage 5
________________ (२) जेथी चतुर्मासमां मह्मराजश्रीना रसमस : वाणीवीला धर्मापदेशवडे सेंकडो जीवो प्रतिबोध पाम्या, तेमां पण मगनभाइ.प्तो प्रथमीज अमिभक्तिवाला अने धर्मीष्ट होवाथी महाराजश्रीना उपदेशथी मगनभाइने एवी दैराग्य वृत्ति जाग्रत थइ के आ संसारना क्षणमंगुर हरखको त्याग करवौ श्रेष्ठ ... 'अगनभाइने बे पुत्र हिता, मोटी पुत्र नाम मणिलाल अने माना पुत्र नाम हेमचंद हेतुं हमद चार वर्षे न्हाला हत्ता बन्ने सरकारी निशाना सारी अभ्यास कर्यो हतो अने बन्नेमा विवाह पण यया हता. धर्मीष्ट पिताश्रीना परिचयथी बन्ने पुत्र निरंतर नव कारमंत्रनु स्मरण करती, पतिक्रमणना भूत्र अने देहरासरमा कहिनामा दूहा विगैरे धार्मिक अभ्यास पर करता, मूळथी बन्ने पुत्र अदिशाली अने पिताश्री धर्मनौष्ठ, तेथी वाफ वा धेटा" ए कहेवर्तने अनुसार धीरे धीरे धर्मरेमो थवार्थी घणीवार मुनिनु व्याख्यान श्रवण करवा जत्न स्मारकाध ज्ञाम उपर मेम थ.. गथी जीव विचार नवस्वामिरे गांव पीकरणाम नो अभ्यास को. मातपिकाए. सूने भाइयो फरणात Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Unwanay. Suratagyanbhandar.comPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 140