Book Title: Gatha Param Vijay Ki Author(s): Mahapragya Acharya Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay View full book textPage 7
________________ गाथा परम विजय की वसंत ऋतु परिवर्तन की ऋतु है। इस ऋतु में पुराने पत्ते झड़ जाते हैं, नई कोंपलें फूटने लग जाती हैं। केवल वृक्ष में ही नहीं, परिवर्तन मनुष्य के शरीर में भी होता है। उसमें भी नए रक्त का संचार होता है। नव रक्त के संचार का समय है वसंत ऋतु। इस ऋतु में सहज ही प्रकृति अपनी सुषमा बिखेरती है। फूल विकस्वर होते हैं। कोकिल का आलाप शुरू हो जाता है। आम बौराने लग जाते हैं। मधु और महक वाला मीठा सा वातावरण निर्मित होता है। हर व्यक्ति के मन में वन क्रीड़ा करने की भावना भी जागती है। वनस्पति जगत् के साथ मनुष्य का बहुत गहरा संबंध है। यदि वनस्पति न हो, हरियाली न हो तो आदमी भी सूखने लग जाए। वनस्पति जितनी प्रफुलित रहती है, पेड़-पौधे जितने पुष्पित, पल्लवित और फलित रहते हैं, उतना ही आदमी भी पुष्पित, पल्लवित और फलित होता है। वनस्पति का जगत् मुरझाता है, मनुष्य भी मुरझाने लग जाता है। बहुत गहरा संबंध है दोनों में। जब-जब नया कुछ आता है, मनुष्य के मन में एक कुतूहल की भावना पैदा होती है। वसंत ऋतु में पुष्प पराग बिखेरने लगे। पुष्प की परिमल से आकृष्ट होकर भंवरे भी चारों ओर मंडराने लगे। सुषमा बढ़ गई। इतना सौन्दर्य प्रकृति ने बिखेरा कि सबका मन उसमें लुभावना बन गया। ___राजगृह नगर के लोग बाहर आए। आदमी घर में रहता है पर सदा घर में रहना अच्छा नहीं लगता। कभी-कभी बाहर जाना अच्छा लगता है। घर में रहते-रहते ऊब जाता है, तब बाहर जंगलों में, बगीचों और उद्यानों में जाता है। वन-विहार, वन-क्रीड़ा के लिए जाता है। छत के नीचे रहना अच्छा नहीं लगता। छत भी एक बंधन है, एक घेरा है। सदा सीमा में रहना अच्छा नहीं लगता। मनुष्य की मूल प्रकृति है घेरे से मुक्त रहना, सीमा से मुक्त रहकर असीम में रहना। असीम में रहने की बात, घर के बंधन से मुक्त रहने की बात जाने-अनजाने मन में रहती है। इसीलिए वह असीम आकाश के नीचे रहना चाहता है, घर के बंधन से मुक्त होकर खुले वातावरण में रहना चाहता है।Page Navigation
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