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Philosophy of Six Padas
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आत्मा के होने का भी प्रमाण मिलता है। First Pada - soul exists. Just as substances like pots, clothes etc. exist, soul also exists likewise. The proof of the existence of pots, clothes etc. is found through their particular qualities. The proof of the existence of soul is similarly found through its obvious quality of power of consciousness, which illuminates itself and non-self (substances other than soul).
दूसरा पद : ‘आत्मा नित्य है'। घट, पट आदि पदार्थ अमुक कालमें ही रहते हैं। आत्मा त्रिकालवर्ती है। घट, पट आदि संयोगजन्य पदार्थ हैं। आत्मा स्वाभाविक पदार्थ है, क्योंकि उसकी उत्पत्ति के लिये कोई भी संयोग अनुभव में नहीं आता। किसी भी संयोगी द्रव्य से चेतन-सत्ता प्रगट होने योग्य नहीं है, इसलिये वह अनुत्पन्न है। वह असंयोगी होने से अविनाशी है, क्योंकि जिसकी किसी संयोग से उत्पत्ति नहीं होती, उसका किसी में नाश भी नहीं होता। Second Pada - soul is ever-present. Substances like pots, clothes etc. exist for a particular time. Soul exists in all the three times (past, present, and future). Substances like pots, clothes etc. come into existence through certain combinations. Soul substance exists through own nature, because for its existence no particular combinations have been experienced. Power of consciousness is not capable of origination through substance combinations; therefore it is unborn. Because it can not be created through combinations, it is non-perishable. Whatever can not be created through combinations, can not destruct back into anything else.
तीसरा पद : ‘आत्मा कर्ता है'। सब पदार्थ अर्थक्रिया से संपन्न है। सभी पदार्थों में कुछ न कुछ क्रियासहित परिणाम देखने में आता है। आत्मा भी क्रियासंपन्न है। क्रियासंपन्न होने के कारण वह कर्ता है। श्री जिन भगवानने इस कर्तापने का तीन प्रकार से विवेचन किया है : परमार्थ से आत्मा स्वभावपरिणति से निज स्वरूप का कर्ता है। अनुपचरित अनुभव में आने योग्य-विशेष संबंध सहित) व्यवहार से आत्मा द्रव्य-कर्म का कर्ता है। उपचार से आत्मा घर नगर आदि का कर्ता है।
G.T.R.-8
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