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Philosophy of Six Padas
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completeness, immortality, and extreme bliss. Soul clearly, evidently, very obviously, and closely experiences that it got united with all extraneous modes through own repeated practices, otherwise it is completely at variance with them. When in association with mortal and extraneous substances, soul does not know right and wrong. After knowing its own true form, the seat of full glory free of bindings of birth, old age, death, diseases etc., soul feels satiated. All those people who have found soul form through the words of one experienced in the six spiritual steps, become free of internal ailments, external ailments, , worldly disturbances, and all bothersome associations, have become so, and will become so in the future.
जिन सत्पुरुषों ने जन्म, जरा और मरण का नाश करनेवाला, निज स्वरूप में सहज-अवस्थान होने का उपदेश दिया है, उन सत्पुरुषों को अत्यंत भक्ति से नमस्कार है। उनकी निष्कारण करुणा से नित्य प्रति निरंतर स्तवन करने से भी आत्म-स्वभाव प्रगटित होता है। ऐसे सब सत्पुरुष और उनके चरणारविंद सदा ही हृदय में स्थापित रहो। Salutations with utmost devotion to those true personages, who have advised effortless existence in own form, the annihilator of birth, old age, and death. Through their causeless mercy, even constant daily praise of them manifests soul nature. May such personages and their lotus feet always enshrine in the heart.
जिसके वचन अंगीकार करने पर, छह पदों से सिद्ध ऐसा आत्मस्वरूप सहज में ही प्रगटित होता है, जिस आत्मस्वरूप के प्रगट होने से सर्वकाल में जीव संपूर्ण आनंद को प्राप्त होकर निर्भय हो जाता है, उस वचन के कहनेवाले ऐसे सत्पुरुष के गुणों की व्याख्या करने की हममें असामर्थ्य ही है। क्योंकि जिसका कोई भी प्रत्युपकार नहीं हो सकता ऐसे परमात्मा भाव को, उनसे किसी भी इच्छा के बिना, केवल निष्कारण करुणा से ही प्रदान किया है। तथा ऐसे होने पर भी जिसने दूसरे जीव को 'यह मेरा शिष्य है, अथवा मेरी भक्ति करनेवाला है; इसलिये मेरा 'है' इस तरह कभी भी नहीं देखा - ऐसे सत्पुरुष को अत्यंत भक्ति से फिर फिर से नमस्कार हो।
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