Book Title: Gandhar Sarddhashatakam Author(s): Jinduttsuri Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org है। यह प्रेरणा आचार्य श्रीजिनदत्तसूरिजीको कैसे, कहां से मिली इसका उल्लेख कहीं वृत्ति में नहीं है, परंतु हम अनुमान लगाते हैं। कि संभवतः चैत्यवासी शीलांकाचार्यविनर्मित “महापुरुषचरित्र" से ही प्राप्त हुई होगी, क्योंकि उसमें सबके चरित्र है तब पूज्य आचार्यवर्य ने प्रथम तीर्थंकर ऋषमदेव से भगवान महावीर [ आदि तीर्थंकरो का नाम निर्देश न कर आदि शब्द से सबका ग्रहण किया गया है ] और यहां से जिनवल्लभसूरिजी तक के पूज्य गणधर आचार्य मुनियों का अत्यन्त संक्षिप्त रूप से उल्लेख कर सबका स्मरण किया गया है । यद्यपि उपरोक्त ग्रन्थ में कालकाचार्य, सिद्धसेन दिवाकर, पादलिप्तसूरि, मानदेवसूरि, मानतुंगसूरि आदि कई महाप्रभाविक विद्वान आचार्यों का उल्लेख नहीं ऐसा क्यों किया गया होगा ? कहना कठिन है तथापि यह लघु ग्रंथ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व का है १५० प्राकृत गाथाओं में अति संक्षिप्त रूप से जैन इतिहास संकलित हैं जो जिनदत्तसूरिजी के इतिहासप्रेम का परिचायक है। जैन मुनियो को इतिहास बड़ा प्रेम रहा है, एतद्विषयक साहित्य भी अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध होता है जिनमें तो कई ग्रन्थ से महत्वपूर्ण जो भारतीय साहित्य ग्रन्थ अपना स्थान स्वतंत्र रखते हैं, जो आर्यावर्त के पुरातन गौरव पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं, प्रकृत ग्रन्थ में यदि प्रत्येक आचार्य का क्रमानुसार रूपवान सार परिचय दिया होता तो ग्रन्थ की ऐतिहासिक महत्ता और भी बढ़ जाती, नामकरणः- प्रकृत ग्रन्थ का नाम " गणधर सार्द्धशतक " मूल ग्रन्थकार का दिया हुआ है या अन्य किसी का ? यह एक प्रश्न है । संपूर्ण ग्रंथावलोकन अनंतर कहीं पर भी नाम निर्देशात्मक उल्लेख नहीं मिलता, परंतु नामार्थ पर ध्यान देने से जरुर मालूम होता है कि गणधरशब्द की व्युत्पत्ति “गणं धारयतीति गणधरः " इस प्रकार है। गच्छनायक मालिक, अधिपति, आचार्य आदि गणधर के पर्याय For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri GyanmandirPage Navigation
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