Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 13
________________ (११) ॥सहियर सुणी रे जीवानिगमनी वाणी, मीठी लागे रे मुऊने वीरनी वाणी ॥ ए आंकणी ॥ सूत्र तणी रचना गणधरनी, अर्थ ते वीरें जांख्या॥गौत म पूजे बे कर जोडी, आतमहित करी दाख्या सण ॥ मी०॥१॥ जीव अजीव तणी जे रचना, पूड़ी गौतमस्वामी ॥ नरक निगोद तणी जे वातो, जां खे अंतरजामी ॥ स० ॥ मी० ॥२॥ साते नरक तणां फुःख लांख्यां, बातमहित करी शीख्या ॥जे जे प्रश्न पुढे गोयम, ते ते प्रभुजीये नांख्या ॥ स०॥ ॥मी० ॥३॥पांच अनुत्तर तणी जे रचना, विवि ध प्रकारें नांखी ॥ जविक जीवने सुणवा कारण, श्री जिन ागम साखी ॥ स ॥ मी०॥४॥ मीठी वापीयें गहूली गावे, वीर जिणंद वधावे ॥ स्वस्तिक पूरे नाव धरीने, अदतें करीने वधावे ॥ स ॥मी० ॥५॥नौतनपुरमा रंगे गाई, गहूली चढते उमंगें।। कहे मुक्ति जिनराजनी वाणी, सुणजो अति उड रंगे ॥ सः॥ मी०॥६॥इति ॥४॥ ॥अथ श्रीनगवतीसूत्रनी गली पांचमी ॥ ॥ नवि तुमे वंदो रे, सूरीश्वर गहराया॥ए देशी॥ ॥सहिपर सुणिये रे, जगवतीसूत्रनी वाणी ॥ पात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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