Book Title: Dravyanubhav Ratnakar
Author(s): Chidanand Maharaj
Publisher: Jamnalal Kothari

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Page 6
________________ इस ग्रन्थके प्रकाशन का सम्पूर्ण श्रेय व्याख्यान-वाचस्पति, जङ्गम युगप्रधान, बृहत्खरतरगच्छाचार्य, भट्टारक श्री जिनचारित्रसूरिजी महाराजको है कि जिन्होंने श्रावकोसे प्रेरणा करके सहायता दिलाकर ग्रन्थ छपाकर प्रसिद्ध करनेका अवसर प्राप्त कराया। करीब २५ बरससे यह ग्रन्थ लिखा हुआ मेरे पास पड़ा था, परन्तु अब उक्त आचार्य महाराजकी कृपासे प्रकट करनेका सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। ___ इस ग्रन्धके १७ फोर्म तक भाषाकी अशुद्धि प्रायः रह गई हैं, क्योंकि प्रफ मुझे ही देखने पड़े थे, और मुझे शुद्धाशुद्धका पूरा ज्ञान न होनेसे यह त्रुटि रह गई है सो वाचक वर्ग क्षमा करें। परन्तु जहांसे प्रमाणका स्वरूप चला है वहांसे मेरे मित्र कलकत्ता युनिवर्सिटीके प्राकृत-साहित्यव्याख्याता, पंडित श्री हरगोविन्द दासजी, न्याय-व्याकारण-तीर्थ ने प्रूफ शुद्ध करनेकी कृपा की है, जिसके लिए मैं उनका कृतज्ञ हूं। , इस ग्रन्थमें जिन जिन महाशयोंने प्रथमसे ग्राहक बनकर सहायता दी हैं उनको मैं धन्यवाद देता हूं। उनके मुबारक नाम इस ग्रन्थमें अन्यत्र प्रकाशित किये गये हैं।। इस जगह मेरे लघु-बंधु श्रीयुत मगनमल कोठारीका नाम विशेष उल्लेख-योग्य हैं कि जिसने इस ग्रन्थके छपाई-आदिके प्रबंधके लिए प्रथम से आवश्यक रकमको बिना सूद देकर अपना हार्दिक धर्म-प्रेम और नैसर्गिक उदारताका परिचय दिया है जिसके लिए वास्तवमें मैं मगरूर हो सकता हूँ। ___ अंतमें, मेरे अज्ञान, अनुपयोग या प्रमादके कारण इस ग्रन्थ में जो कुछ त्रुटियां रह गई हों, उनके लिए सज्जन-पाठकोंसे क्षमाकी प्रार्थना करता हूँ और आशा करता हूँ कि वे इस ग्रन्थको आयंत पढ़कर ग्रन्थकारका और मेरा परिश्रम सफल करेंगे। श्रीसंघका दासजमनालाल कोठारी। Scanned by CamScanner

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