Book Title: Dhyan Shatak
Author(s): 
Publisher: Divyadarshan Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ प्रकाशक के दो शब्द चतुर्विध सघ को बहुत उपयोगी हो, सुन्दर जीवन-उत्थान का साधन बने, और आत्मा के दोषों को बता कर उन्हें दूर करने में खूब सहायक हो तथा अपनी पहुंच की अनुपम साधना को दृष्टि सन्मुख रख दे ऐसे इस ध्यान-शतक शास्त्र के विवेचन को प्रकाशित करते हुए हमें अपूर्व आनन्द होता है। इस शास्त्र ने ध्यान के बारे में अनुपम मार्गदर्शन करके जैनधर्म को सर्वोपरिता सिद्ध कर दी है, वीतराग सर्वज्ञ श्री तीर्थंकर भगवान के अनन्त उपकार को पेश किया (१) नमुत्थुणं आदि देववन्दन सूत्रों के गभित अनुपम तत्त्व, (२) भवस्थिति परिपाक से ले कर उत्तरोत्तर जरूरी आन्तरिक साधना तथा (३) अशुभ ध्यान निवारण पूर्वक शुभ ध्यान के पदार्थः इन तीनों पर महान शास्त्र (१) ललित विस्तरा (२) पंचसूत्र तथा (३) श्री ध्यान शतक समझने में गहन होने पर भी दैनिक उपयोग के होने से पू० पं० जी श्री भानुविजयजी गणिवर (अब पू० आचार्य देव श्री विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज ) ने बहुत सरल और विस्तृत विवेचन के रूप में (१) श्री परमतेज भा० १-२ (२) श्री उच्चप्रकाशने पंथे और (३) श्री ध्यान शतक का विवेचन लीख कर श्री चतुर्विध संघ के समक्ष सुन्दर सामग्री पेश की है। बालभोग्य शैली में लिखे हुए इस ध्यान शतक विवेचन में

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 330