Book Title: Dharmpariksha Author(s): Ishwarlal Karsandas Kapadia Publisher: Mulchand Karsandas Kapadia View full book textPage 6
________________ एक वखत हाथमां लीधा पछी ते पूरो कर्या वगर नीचे मूकातो ना. वळी आ ग्रंथमां कथानी साथे वारंवार आपेलां नीति वाक्यो, द्रष्टांतो, कहेवतो, उपमाओ एटलां तो उत्तम छे के, जे दरेक कंठाग्र करवालायक छे. आ ग्रंथमां त्रीजे पाने १२ मी लीटीमां तथा बीजे ठेकाणेना वाक्योना द्रष्टांतमां ईश्वर कर्ता जे, विवेचन छे ते अन्यमतनी अपेक्षाए के, केमके अन्यमतावलंबी ब्रह्मा ( विधाता ) ने जगतना कर्ता माने छे. जैनो जगतने अनादि निधन माने छे, परंतु केटलेक ठेकाणे द्रष्टांत वगेरेमां अन्यमतनी अपेक्षाए कहेवानी अनेक आचार्योनी रूढी छे, मेथी वांचकोए तेने सत्य अथवा जिनमत प्रणित न समजवु. ___ आवो महान ग्रंथ प्रकट करवानो अमारो आ प्रथम प्रयास होवाथी घणी काळजी राखवा छतां पण हजु भूलो रही गई हशे ते माटे वांचकोनी अमो क्षमा मागीए छीए, अने एमां जे जे कांइ दोषो रही गया होय ते जणाववा विद्वज्जनोने प्रार्थना करीए छीए के जेथी द्वीतीयावृत्ति वखते तेमां सुधारो करवामां आवे. __स्वर्गवासी शेठ चुनीलाल झवेरचंदनां विधवाबाई जडावबाइए आ ग्रंथ प्रकट करावी दिगंबर जैनधर्मनी जे सेवा बजावी छे ते अत्यंत धन्यवादने पात्र तथा आखी कोमने आभाररूप धडो लेवा लायक छे. ___आ ग्रंथमा प्रथम, स्वर्गवासी शेठ चुनीलाल झवेरचंदनुं फोटो साये जीवन चरित्र आपेलुं छे, जे मनन करवा लायक होवाथी आ ग्रंथ शरु करतां पहेलां ए जीवनचरित्र वांचवा खास भलामण करीए छीए.Page Navigation
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