Book Title: Dharmopadesh Sangraha Author(s): Shrutdhar Purvacharya Publisher: Vardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala View full book textPage 3
________________ धर्मोपदेश11311 1-1-1 बे बोल प्रामाणिक पुरुषनुं कथन तेने उपदेश कहेवामां आवे छे आ प्रामाणिक पुरुषो दुनियादारी ना होय तेनुं उपदेश कथन नीतिमां समाय छे. जे प्रामाणिक पुरुषो लोकोत्तर छे तेनुं उपदेश कथन धर्म-आगम कहेवाय छे. आ आगमवचन एज धर्मवचन अने धर्मोपदेश छे. आ धर्मोपदेश ठेर ठेर शास्त्रमां गुंथायेल छे. आ ग्रन्थ कोई स्वतंत्र ग्रन्थ नथी परंतु जुदा जुदा ग्रन्थोमांथी धर्मोपदेशने लगतो जीवन उपयोगी संग्रह करवामां आग्यो छे. शास्त्रमां ठेर ठेर जे नवनीत वेरायेल छे ते नवनीत अहिं एकटुं करवामां आव्युं छे. जीवनमां प्रयाण करनार साधकने एक ज सूक्त जीवननो मार्गदर्शक बने छे. आवा अनेक उपयोगी को अहं आपवामां आव्यां छे. आ ग्रन्थ व्याख्यान उपयोगी अने जीवन उपयोगी पण छे. वांचक तेनो लाभ उठावे ते भावना. प्रकाशक - ८२२८२० संग्रहPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 102