Book Title: Dharmamrut Anagar
Author(s): Ashadhar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 19
________________ तणा १८ धर्मामृत ( अनगार) कुलका अर्थ शुक्रकुल अर्थात् स्त्री-पुरुषसन्तान किया है, जो लोकप्रसिद्ध है । इसी गाथामें कहा है कि बाल और वृद्धोंसे आकुल गच्छमें रहकर वैयावृत्य करना चाहिए । आगे कहा है-- वरं गणपवेसादो विवाहस्स प्रवेसणं । विवाहे राग उप्पत्ति गणो दोसाणमागरो॥-मूलाचार १०।१२। अर्थात गणमें प्रवेश करनेसे विवाह कर लेना उत्तम है। क्योंकि विवाहमें स्त्री स्वीकार करनेपर रागकी उत्पत्ति होती है उधर गण भी सब दोषोंका आकर है। इससे यह अभिप्राय प्रतीत होता है कि गणमें रहनेपर रागद्वेषकी सम्भावना तो रहती है। फिर गुरुको अपनी मृत्यु उपस्थित होनेपर उसका वियोग दुःखदायक हो सकता है। अतः गणमें भी सावधानीसे रहना चाहिए। मूलगुण श्वेताम्बर परम्परामें पांच महाव्रत और छठे रात्रिभोजनविरतिको ही मूलगुण कहा है। किन्तु दिगम्बर परम्परामें सर्वत्र साधुके २८ मूलगुण माने हैं-पांच महाव्रत, पांच समिति, पाँचों इन्द्रियोंका निरोध, छह आवश्यक, केशलोंच, नग्नता, अस्नान, भूमिशयन, दन्तघर्षण न करना, खड़े होकर भोजन करना और एक बार भोजन । भ्रमण या विहार दोनों ही परम्पराओंमें वर्षाऋतुके चार मासके सिवाय शेष आठ महीनोंमें साधुको भ्रमण करते रहना चाहिए । श्वेताम्बर साहित्यमें 'गामानुगाम' पदसे एक गाँवसे दूसरे गाँव जानेका कथन है। ऐसा ही दि. परम्परामें भी है । ईर्यासमिति साधुका मूलगुण है। उसका कथन करते हुए मूलाचार (५।१०७-१०९) में कहा है कि जब सूर्यके प्रकाशसे समस्त दिशाएँ प्रकाशमान हो जायें और मार्ग स्पष्ट दिखाई देता हो तब स्वाध्याय, प्रतिक्रमण, देववन्दना आदि नित्यकृत्य करने के पश्चात् सम्मुख चार हाथ प्रमाण भूमिको अच्छी तरहसे देखते हुए सावधानतापूर्वक मन-वचन-कायके द्वारा शास्त्रमें उपयोग रखते हुए चलना चाहिए। मार्गशुद्धि जिस मार्गपर बैलगाड़ी, हाथी, घोड़े, पालकी, रथ आदि चलते हों, गाय, बैल आदि सदा आते जाते रहते हों, स्त्री-पुरुष चलते रहते हों, जो धूपसे तप्त होता रहता हो, जहाँ हल आदि चलता हो, ऐसे प्रासुक मार्गसे ही साधुको जाना-आना चाहिए। चलते हुए वे पत्र-पुष्प-लता-वृक्ष आदिका छेदन-भेदन, पृथ्वीका घर्षण आदि नहीं करते हैं । वे वायुकी तरह एकदम निःसंग होते हैं। श्वे. साहित्यमें कहा है कि चलते समय साधुको सावधान रहना चाहिए, अधिक वार्तालाप नहीं करना चाहिए। साथमें गृहस्थ या पाखण्डी साधु नहीं होना चाहिए। अपनी सब आवश्यक वस्तुएँ अपने पास ही रखनी चाहिए-उसे पनीले प्रदेश, हिलते हुए पुल और कीचड़में से नहीं जाना चाहिए। जिस मार्गमें चोर, डाकू, उचक्के बसते हों उधरसे नहीं जाना चाहिए। जिस प्रदेशमें कोई राजा न हो, अराजकता फैलो हो वहाँ नहीं जाना चाहिए। या जहाँ सेनाका पड़ाव हो वहाँ भी नहीं जाना चाहिए। उसे खुफिया गुप्तचर समझा जा सकता है। ऐसे वनोंसे भी न जाना चाहिए जिन्हें अधिकसे अधिक पांच दिनमें भी पार न किया जा सकता हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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