Book Title: Devananda Mahakavya
Author(s): Meghvijay, Bechardas Doshi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 16
________________ ॥ प्रस्तावना ॥ ६१. देवानन्दमहाकाव्यके संपादनका साधन प्रस्तुत देवानन्द महाकाव्यका संपादन करनेमें हमें मात्र एक ही प्रति प्राप्त हुई है, और वह प्रति खुद ग्रन्थकारके “निजी अक्षरसे लिखित प्रथम प्रतिके ऊपरसे लिखी हूई मालूम होती है। ग्रन्थकार देवानन्दकी अंतिम प्रशस्तिमें लिखते हैं कि "गोपालगिरिदुर्गेऽस्य लेखनं लेखनन्दनम् । वाचकैर्मेघविजयैः कृतं सुकृतहेतवे” ॥ अर्थात्-वाचक मेघविजयजीने प्रस्तुत ग्रन्थका लेखन गवालियरमें किया है। उपयुक्त प्रस्तुत प्रति, ग्रन्थकार लिखित प्रथम आदर्शके आधारसे लिखी होने पर भी प्रतिमें कहीं कहीं अशुद्धियां रह गई हैं, जिसका सूचन संपादकीय टिप्पणमें किया गया है। प्रतिके पत्र सब मिलाकर ४६ हैं। प्रत्येक पत्रमें ११-१२ पतियां हैं और प्रत्येक पङ्क्ति में ३५-३७ अक्षर हैं। आजु-बाजु और ऊपरके हांसियेमें ग्रन्थकारकृत टिप्पणीयां भी लिखी गई हैं। प्रतिमें प्रायः सर्वत्र पदच्छेद किया गया है । संधिद्वारा अदृश्यताको पाये हुए इ, ई, उ, ऊ वगैरह स्वरोंको भी खास खास चिन्होंसे बताये हैं। टिप्पणीमें कई जगह कोशोंके नामों का भी उल्लेख किया गया है। उल्लिखित कोशके स्थल शोध कर हमने उसके कांड पृष्ठ आदि भी दे दिये हैं। कई जगह व्याकरणके सूत्रोंका भी उल्लेख आता है। वे सूत्रादि कौनसे व्याकरणके हैं यह बात भी टिप्पणीयोमें हमने यथाप्राप्त बताई है। प्रति, अभीतक अच्छी हालतमें है। प्रतिकी दीर्घता लगभग १३ अंगल है और पृथता ६-७ अंगुल है। यद्यपि ग्रन्थका संपादन बडी सावधानीसे किया गया है फिर भी यदि कोई अशुद्धियां दृष्टिगोचर हों तो विज्ञ पाठक उन्हें सूचित करने की कृपा करें। संवत् १७५५ में श्रीमेरुविजयजीके शिष्य श्रीसुन्दरविजयजीने प्रस्तुत ग्रन्थकी लिपि कराई थी। यह उल्लेख देवानन्द महाकाव्यकी अंतिम प्रशस्तिमें है "शरेन्द्रियाद्रीन्दुमितेऽत्र वर्षे चालीलिखत् काव्यमिदं सुशिष्यः। श्रीमेरुशब्दाद् विजयज्ञराजां श्रीसुन्दरादिर्विजयाभिधानः” ॥ -अंतिम प्रशस्ति । कवि श्रीमेघविजयजीके जीवन-परिचयके विषयमें लिखनेके लिए अधिकाधिक साधन हमें श्रीमान् मोहनलाल दलीचंद देशाई बी. ए. एल् एल् बी. द्वारा प्राप्त हुए हैं; एतदर्थ श्रीदेशाईजी धन्यवादाई है। हमने आजसे कोई २३ वर्ष पहले श्रीमेघविजयजीके संबंधमें एक लेख जैनशासन समाचार पत्र में प्रकट किया था उसका उपयोग भी प्रस्तुत प्रस्तावनामें किया गया है। ६२. काव्यकारका परिचय इस देवानंद महाकाव्यके प्रणेता उपाध्याय मेघविजयजी है । उनके जीवनका समस्त वृत्तांत तो उपलब्ध नहीं है अर्थात् उनके माता-पिता, मूल निवास स्थान, मूल नाम, साधु होनेके बाद उनका विहारक्षेत्र, उनके विशिष्ट उपासक इत्यादिका वृत्तांत जाननेका कोई साधन नहीं है। परंतु साधुदशाका जो कुछ थोडा बहुत वृत्तांत प्राप्त होता है वह उनकी निजकी कृतियोमेंसे है; और इस प्रकार है 'उपाध्याय मेघविजयजी श्वेताम्बर जैन संप्रदायानुसारि तपागच्छके यति थे और वे प्रसिद्ध सम्राट् अकबरके कल्याणमित्र श्रीहीरविजयसूरिजीके संतानमें से थे। उनके दीक्षागुरु पंडित कृपाविजय थे और श्रीविजयदेवसूरिके

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