Book Title: Dev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Author(s): 
Publisher: Muni Manisagar

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Page 13
________________ ७ धार्मिक रिवाज देशकालानुसार फिरते आये हैं, उस. मुज़न पूजा आरती वगैरह का द्रव्य देव द्रव्य में जानेका जो रिवाज है उसको फिरवाकर साधारण खाते में लेजाने का. लिखा. है.. : ... . . . : . ८ पूजा आरती वगैरह के चढावेको असुविहितों का आचरण, ठहराया है. एं प्रभुकी भक्तिके कार्योंमें चढावा नहीं होसकता ऐसा लिखा है, इत्यादि. आपकी लिखी अनेक बातोंको में बहुतही अनुचित समझता हूं, इसलिये शास्त्रार्थ करने को तयार हूं. आपने मेरे साथ इस विषय में शास्त्रार्थ करने का मंजूर किया था और इन्दौर में शास्त्रार्थ करने को बुलवाया है, अब शास्त्रार्थ को उडाना चाहते हो यह योग्य नहीं है. . १ संवत् १९७८ के." जैन " पत्र के अंक ४५. वें में मेरे . अकेले के साथ आपने शास्त्रार्थ करने का मंजूर किया था. अब समुदायिक पक्ष का बहाना लेकर शास्त्रार्थ को उडा देते हो यह अनुचित है. २ " जैन” पत्र के अंक ४९. वें में तार- समाचार . छपवाकर, मेरे को इन्दोर शास्त्रार्थ के लिये चेलेंज (जाहिर सूचना.) देकर जल्द. बुलवाया था. मैं शास्त्रार्थ लिये ईधर आया तो आपं अब प्रतिष्ठा विद्वत्ता: वगैरह के बहानोंसे शास्त्रार्थ. उडाना चाहते हो, यह भी अनुचित है... . ३ ॥ जैन "पत्र के अंक ७ वें में मैं शास्त्रार्थ करने को इन्दोर नहीं आया, उसपर आप आक्षेप करवाते हैं, अब आगया तो 'आडी टेढी बातों से शास्त्रार्थ : उडाने की कोशीश करते हैं, यह भी 'अनुचित है. . . . . . . . . . . . . . . ४ फागण सुदी १० को आपने मेरे को बदनावर पोस्ट कार्ड लिखवाया है, उसमें जल्दी इन्दौर आवो और शास्त्रार्थ करो. शास्त्रार्थ के लिये नियम प्रतिज्ञा वगैरह बातें बादी प्रतिवादी दोनों को मिलकर तै कर

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