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॥ ॐ श्रीपंचपरमेष्टिभ्यो नमः ।। देवद्रव्यके शास्त्रार्थका दूसरी दफे पत्रव्यवहार.
वैशाख शुदी १ के रोज श्रीमान् विजयधर्म सूरिजीने बहुत श्रावकों के व मेरे परम पूज्य गुरु महाराज श्री १००८ श्री उपाध्यायजी श्रीमान् मुमतिसागरजी महाराज के सामने दोनों पक्ष तर्फ से ४ साक्षी बनाकर शास्त्रार्थ करने का और उस में अपनी झूठ ठहरे तो उसका मिच्छामि दुक्कडं. देनेका मंजूर किया था. इस वातपर मैंने उन्होंको पत्र भेजा वह यह है:
श्रीमान् विजयधर्म सरिजी-आपने कल शामको बहुत श्रावकों के सामने दोनों पक्ष तर्फ से ४ साक्षी बनाकर शास्त्रार्थ होनेका कहा है अगर यह बात आपको मंजूर हो तो शास्त्रार्थ करनेवाले मुनिके नाम के साथ दो साक्षी के भी नाम लिख भेजें पीछे मैं भी दो साक्षी के नाम सिखूगा. शास्त्रार्थ का समय, स्थान, नियम, मध्यस्थ वगैरह बातों का उसके साथ खुलासा हो जावे तो शास्त्र मंगंवाने व देशांतर से आनेवालों को सूचना देने वगैरह बातों का सुभीता होवे, इसलिये इस बातका जलदीसे जवाब मिलना चाहिये. अगर शास्त्रार्थ होना ठहर जावे तो पत्र व्यवहार तो छप चुका है, मगर आगे उसका निर्णय छपवाना बंध रखा जावे ।
विशेष सूचनाः-देवद्रव्य संबंधी इंदोर की राज्य सभामें शास्त्रार्थ करने का मेरा लिखा हुवा पोष्ट कार्ड लोगोंको बतलाकर क्यों भ्रम में गेरते हो. देवद्रव्य के शास्त्रार्थ को जाहिर सूचना तो आपने आसोज महिने के जैनपत्र में प्रकट करवायी थी और कार्तिक शुदी १० को मैंने आप के साथ देवद्रव्य संबंधी शास्त्रार्थ करने का मंजूर किया था
और यह पोष्ट कार्ड तो. धूलिये, में आपके किये हुवे पर्युषणा के शास्त्रार्थ के लिये तोफान संबंधी रतलाम से आषाद सुदीमें मैंने आपको