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[१९] ले सकते हैं. इसलिये अपने द्रव्यसे बनीहुई मिठाई की बात भोले. जीवों.
को बतलाकर पूजा आरती के चढावे के देवद्रव्य को साधारण. खाते में — करके सर्व कार्योंके उपयोगमें लानेका कहनेवाले अज्ञानी समझने चाहिये.
____३४ अगर कहा जाय कि जैसे भगवान्की अंगरचनाः (आंगी) करते हैं तब भक्त लोग अपने घरके लाखों या करोडों रुपयों की कीमत के जवाहिरात के आभूषण वगेरह भगवान् के अंग ऊपर चढाते हैं और पीछे आंगी उतारने के बाद वे सब आभूषण वगैरह अपने घर को लेजाते हैं, उसी तरह भगवान् की पूजा औरतीके चढावेका द्रव्यभी यद्यपि भगवान् की भक्ति निमित्त बोलते हैं और वो भगवान् को अर्पण होता है तोभी पीछा लेकर साधारण खातमें रखनेसे सबके उपयोगमें आवे उसमें कोई दोप नहीं, ऐसा कहना भी उचित नहीं है. क्योंकि देखिये, भगवान् की अंग रचनामें तो सीर्फ अंगरचना रहे तब तक एक दिनके लिये अपने घरके आभूषणादिक भगवानकी भक्ति में अल्पकालके लिये रखते हैं मगर हमेशाके लिये अर्पण नहीं करते. इसलिये करार मुजब समय पूरा होने बाद पीछे अपने घरको लेजासकते हैं. मगर. भगवान्की पूजा आरतीके चढावेका द्रव्य तो भगवान्की भक्ति में आभूषणादिक की तरह अल्पकाल के लिये वापरने को नहीं देते. किंतु पूज्य परमात्मा समझकर भक्तिसे हमेशा के लिये अर्पण करते हैं.. उस द्रव्यको साधारण खातमें रखकर हरएक कार्यमें उपयोग नहीं करसकते. भक्तिमें अल्पकाल के लिये वापरनेको दिये हुए आभूषणों के दृष्टांतसे भगवान्की पूजा आरतीके अर्पण किये हुए देवद्रव्यको साधारण खातेमें लेनेका कहना प्रत्यक्षही झूठ है... . ३५ अगर कहा जाय कि पूजा आरती के चढावे का आदेश संघ देता है, इसलिये उस द्रव्यका मालिकभी आदेश देनेसे संघही ठहरता है. इसलिये संघ चाहे वहां उस द्रव्यका उपयोग कर सकता है, यह कहनाभी सर्वथा अनुचितही है क्योंकि देखिये जैसे संसार व्यवहार में