Book Title: Dev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Author(s): 
Publisher: Muni Manisagar

View full book text
Previous | Next

Page 80
________________ को परस्पर स्पर्धा पूर्वक अर्थात् सामने २ उत्साह सहित चढावा होरहाथा उतनेमें एक गुप्त पुरुष ने इन्द्रमाला के चढावेके सवा करोड रुपये बोले, उसको सुनकर राजा आश्चर्यसे चमत्कार पाया हुआ बोला कि सवा करोड बोलने वालेको माला देओ उससे उस पुण्यवान् के दर्शन होवें, ऐसा सुनकर महुवा के रहने वाले हांसाधारू मंत्री के पुत्र सामान्य वेषधारण करने वाले जगडु शाह खडे हुए, उनकी गरीब स्थिति जैसा सामान्य वेष आकार देखकर राजाको शकपेदा हुआ इसलिये मंत्रीसे बोले कि पहिले द्रव्यकी व्यवस्था करके पीछे माला देना. ऐसा सुनकर जगड शाह सब संघके समक्ष सवाकरोडके मूल्यवाला रनदेकर बोले, हे राजन् ! यह शत्रुजय तीर्थ सबके बराबर है इसलिये जिसकेपास द्रव्य होगा और जिसकी भावना होगी वाही यहांपर चढावा बोलगा परन्तु द्रव्य की व्यवस्था बिना कोइभी चढावा नहीं बोलसकता. ऐसे जगडुशाह के बचन सुनकरके और उसीसमय सबके समक्ष सवाकरोड रुपियोंके मूल्य वाला रत्न देनेका देखकरके राजा बड़े हर्ष सहित उनके साथ प्रेम भक्ति का आलिंगन पूर्वक बोले आप हमारे संघमें मुख्य संघपति हैं ऐसा आनंद युक्त सन्मान देकर इन्द्रमाला दी, तब उनने भी वह माला तीर्थभूत अपनी माताको पहिनाई. और दूसरेभी धनवान लोग इसीप्रकार से परस्पर चढावे करके स्वयं वर माला की तरह इन्द्रमाला को आदर पूर्वक ग्रहण करनेलगे, शत्रुजय जैसी पवित्र तीर्थ भूमि में ऋषभदेव जैसे तीर्थनाथके मंदिरमें भगवान् को अपना सर्व द्रव्य अर्पण करके भी उस इन्द्रमाला को कौन ग्रहण न करे अर्थात्-सब कोई ग्रहण करे, जिसके पुण्य प्रभाव से इस लोकमें भी इन्द्रपदवी प्राप्त होती है । इसीतरह से अर्थात् जैसे इन्द्रमाला ओंके चढाये हुए वैसेही पूजा, आरती, मंगलदीपकादि कार्योंके भी चढावे होने पूर्वक तीर्थंकर भगवान् की द्रव्यपूजा किये बाद जिनेश्वर भगवान् को नमस्कार करके महाराजा कुमारपाल हाथ जोडकर भावपूंजा वीतराग प्रभुकी स्तुति करने लगे..

Loading...

Page Navigation
1 ... 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96