Book Title: Dev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Author(s): 
Publisher: Muni Manisagar

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ [४] करते हैं. वैसेही कई साधु लोग पहिले चैत्यवासी शिथिलाचारी होकरके अपने स्वार्थके लिये अपने संयम धर्मके विरुद्ध अनेक तरहके अनुचित आचरण करते थे परंतु उस समयभी उन्होंके सामने शुद्ध संयमी मुनियोंका समुदाय मौजूद था इसलिये शासनकी मर्यादामें फेरफार नहीं करसक्त थे. देवद्रव्यका रिवाज पहिलेसेही चला आता था उसकी सार संभाल श्रावक 'लोग करते थे उसके बदले चैत्यवासी लोग करने लगे थे उसमें देव द्रव्यका उपयोग अपने स्वार्थके लिये भी करने लग गये थे, परंतु देवद्रव्य इकट्ठा करने का नवीन रिवाज चैत्यवासियोंने नहीं चलाया था, किंतु प्राचीन ही है. इसलिये चैत्यवासियोंने देवद्रव्य इकट्ठा करने का नवीन रिवाज चलाया है, ऐसा कहकर अभी देवद्रव्यकी वृद्धि करनेका जो निषेध करते हैं उन्होंकी बडी अज्ञानता है. ६६ औरभी देखो विचार करो-चैत्यवासी लोग मंदिरों में रहने लगे १, भगवान्की मूर्ति की द्रव्यपूजा अपने हाथों से करने लगे २, देवद्रव्य खाने लगे ३, मंदिर व पौपधशाला आदिक आपही बनाने लगे ४, बाडी वगीचा मकान क्षेत्रादि रखने लगे ५, सोना चांदी आदि परिग्रह द्रव्य रखने लगे ६, ज्योतिप-निमित्त-यंत्र-मंत्र-तंत्रादिसे अपनी आजीविका चलान लगे ७, बहुत मुल्यवाले अच्छे अच्छे वस्त्र पहिरने लगे ८, रुई वगैरहके गादीतकिया आदि आसन व पथारी रखने लगे ९, सचित जल; फल; तावुलादिक खाने लगे १०, हमेशा गरिष्ट पुष्ट विगयवाला आहार पकवानादि वार वार खाने लगे ११, मंदिरोमें भक्तिके नामसे रात्रिको जाने व स्त्री पुरुपों को इकठे करने लगे १२, जिनराजकी मूर्तिकी प्रतिष्ठा व स्नात्र महोत्सवादि कार्योंको मंदिरों में रात्रिको करने लगे १३, अपने अपने गच्छ के नामसे बाडा बंधी करके ब्राह्मणोंकी तरह यजमान वृत्ति करने लगे १४, अपने भक्तोंको अन्य शुद्ध संयमी मुनियोंके पासमें सत्यधर्म श्रवण करनेको जाने का निषेध करने लगे १५, अधिक महीने के ३० दिवसोंको पर्युषणादि

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96