Book Title: Dev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Author(s): 
Publisher: Muni Manisagar

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Page 81
________________ [३२] · . ५१ देखिये ऊपरके पाठमें देव द्रव्यं की वृद्धि करने के लिये बोली बोलने का.( चढावा करनेकां) खुलासा पूर्वक पाठ है इसलिये देवद्रव्य की वृद्धि करनेके लिये चढावा करनेका पाठ किसीभी 'शास्त्रमें नहीं है ऐसा लिखना विजयधर्म सूरिजी का प्रत्यक्ष झूठ है. . - ५२ अगर कहा जाय कि ऊपरमें जो पाठः बतलाया है यह तो चरितानुवाद है, अर्थात्-कुमारपाल राजाके चरित्रमें कथन है, परन्तु विधिवाद में अर्थात् देव द्रव्य की वृद्धि के लिये चढावे बोलने ऐसा पाठ विधिवाद के शास्त्रोंमें नहीं है, ऐसा कहना भी. सर्वथा अनुचित है, क्योंकि देखिये " इदं तीर्थ सर्व साधारणं अत्र द्रव्य मुस्थमंतरेण. नहि कोऽपि वक्ति" इस. वाक्य में जगडुशाह ने कुमारपाल महाराजा को सर्व संघके समक्ष साफ कहा है कि- यह, शत्रुजय तीर्थ सबके समान है, इसलिये जिसके पास द्रव्य देनेका. योग होगा वोही यहांपर. चढावा बोलेगा, बिना द्रव्य कोई चढावा नहीं बोलसक्ता, इस पाठसे यही साबित होताहै कि कुमारपाल महाराजा के पहिलेसे ही देवद्रव्य की वृद्धि करनेके लिये चढावा बोलनेकी विधि परंपरासे चलीआती थी और "मालोद् घट्टन समये मिलितेषु श्रीनृपादि संघपतिषु मंत्री वाग्भट इन्द्रमाला मूल्ये लक्ष चतष्कमुवाच " इस वाक्यमें भी इन्द्रमाला के चढावेके समये राजा कुमारपाल, अन्य संघपति, आगे वान्. शेठिये और .सर्व संघ इकट्ठा. होनेके बाद वाग्भट मंत्रीने इन्द्रमाला के चढावेके पहिली दफे ४ लाख रुपये बोले. इस पाठसे भी कुमारपाल महाराजाके पहिलेसे ही चढावे करने की विधिका रिवाज चलाआता था. . ऐसा साबित होता है इसलिये इसबातको खास विजयधर्म : सूरिजी के परममान्य श्राद्धविधि ग्रंथमें विधिवाद में कहा है, देखिये उसका पाठ:-.. ५३." देवद्रव्य वृद्धयर्थ प्रतिवर्षे मालोद्धट्टन - कार्य, तत्र. चैन्द्रयान्य वा माला प्रतिवर्षे यथाशक्तिमाह्या, श्रीकुमारपाल संघे मालोद्घटन

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