Book Title: Dev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Author(s): 
Publisher: Muni Manisagar

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Page 38
________________ आनेका और शास्त्रार्थ करनेका लिखा है उसकी नकल देवद्रव्यसम्बन्धी शास्त्रार्थ के पत्र व्यवहार के पृष्ठ ८वेंमें छपचुकी है. व उन्होंके हस्ताक्षर का खास पोष्ठकार्ड भी मेरेपास मौजूद है. जिसको शक हो.वे मेरेपास आकर बांच लेवें. २ उसी पोष्टकार्ड में उन्होंने शास्त्रार्थ के लिये नियम, साक्षी, मध्यस्थ वगैरह वातें दोनों को मिलकर करलेने का साफ खुलासा लिखा था. अब वो बदल गये. यह दूसरा मृपावाद हैं. . • ३ वैशाख सुदी १० के रोज उन्होंने एक हेडविल छपवाया है उसमें साधु धर्मकी मर्यादाके विरुद्ध गलीच, अवाच्य व अनार्य भाषा लिख कर शासनकी व अपनी हिलना करवाई है, और अपने गुण प्रकट किये हैं. यह बात इन्दौर के लोगों को प्रकटही है. जिसपरभी मणिसागरने गलीच भापा लिखकर शासनकी हिलना करवाई है, ऐसा लिखा यह भी तीसरा प्रत्यक्ष मृषा भाषण है. मैंने आजतक कोई भी वैसी भाषा का या किसी तरह का हेंडबिल इन्दोरमें छपवाकर प्रकट किया ही नहीं है, यह बात इन्दोरका सर्व संघ अच्छी तरहसे जानता है. ४ इन्दोरसे ही पोष बदी में भावनगर के जैन पत्रमें विद्याविजयजी ने तार समाचार छपवाकर मेरेको शास्त्रार्थ के लिये चैलेंज (जाहिर सूचना) दीथी. अवमैं शास्त्रार्थकेलिये आया तो न्यायानुसार.नियम, साक्षी, मध्यस्थ वगैरह व्यवस्था करके शास्त्रार्थ करते नहीं. यह चौथा मृषावाद है. ५ उसी तार समाचार में " मणिसागर हजुसुधी इन्दोर आवेल : नथी. अने तेमना पत्रोथी मालूम पडेछे के ते शास्त्रार्थ करे तेम जणातुं नी," ऐसा छपवाया है. मैं शास्त्रार्थ करना नहीं चाहता उन पत्रोंकी नकल आजतक बतला सके नहीं, और झूठ छपवानेका मिच्छामि दुक्कडं . देतेभी लजा करते हैं. यह प्रत्यक्ष ही पांचवी माया मृषा है. .. :

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