Book Title: Dev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Author(s): 
Publisher: Muni Manisagar

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Page 49
________________ ४८ और बहुत विद्वान् मुनिजन मौजूद हैं, तो भी हमारे सामने देवद्रव्य के विवाद संबंधी शास्त्रार्थ करने को कोई भी खडा नहीं हुआ, इसलिये हमारी वात सत्य है, उन्होंका आग्रह झूठा है. एक आनंदसागर सूरिजी इन्दोरमें शास्त्रार्थ करनेको आये थे सो भी ठहर सके नहीं. डर से मांडवगढं तीर्थ की यात्रा के बहाने. विहार कर गये, इत्यादि बातों से भोले लोगों को बहकाते थे, और जब तक.मैंभी इन्दोर शास्त्रार्थ के लिये नहीं आया था तब तक.तो मणिसागर शास्त्रार्थ करने को आता नहीं, आता नहीं इत्यादि बातें करते थे परंतु जब मैं शास्त्रार्थ के लिये इन्दोर उनके सामने आया तो उनके मुनिमंडल में से विद्वत्ता को व अपनी सत्यताका अभिमान.रखनेवालों में से कोई भी साधु मेरे साथ शास्त्रार्थ करनेको खडा नहीं हो.सका और जाहिर सभा में या खानगी में उन्होंने उनके स्थानपरन्याय केअनुसार.शास्त्रार्थ करना मंजूर किया नहीं.. किसी तरहसे भी आड़ीटेढी वातों के झूठे झूठे वहाने लेकर शास्त्रार्थ से भगने के रस्ते लिये हैं. इसलिये अब मैं उन्होंकी झूठी झूठी प्ररूपणा की. मुख्य मुख्य सब बातोंका निर्णय बतलाता हूं और सर्व मुनि महाराजाओंको व सर्व शहरोंके तथा सर्व गांवों के सर्व संघ को जाहिर विनंती करता हूं कि इस निर्णय को शहरों शहर, गांवोंगांव और प्रत्येक देशमें जाहिर करें. उससे हजारों लोग संशय में गिरे हैं उन्होंका उद्धार हो, समाज का क्लेश मिटे और भगवान् की भक्तिके, देवद्रव्य की रक्षाके, वृद्धिके लाभके भागी हों. इति शुभम् । श्रीवार निर्वाण सम्वत् २४४८. विक्रम सम्वत् १९७९ ज्येष्ठ शुदी १. हस्ताक्षर परम पूज्य उपाध्यायजी श्रीमान् मुमतिसागरजी महाराज का . लघु शिष्य मुनि-मणिसागर, इन्दोर (मालवा). .

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