Book Title: Dev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Author(s): 
Publisher: Muni Manisagar

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Page 60
________________ [११] लोग तो भगवान की भक्ति के लिये स्वप्न उतारते हैं इसलिये उसका द्रव्य देवद्रव्य होता है. उस द्रव्यको कोई स्वप्न खाते के नाम से रक्खे तो भी भगवान की भक्ति के सिवाय साधारण खातेमें नहीं लग सकता. १९ पाठकगण श्रीमान् विजयधर्म सूरिजी के विचारों का एक नमूना देखे अपने हाथ से श्रावकों को क्या लिखते हैं. • " श्री नयाशहेरथी लि. धर्मविजयादि साधु सातना श्रीपालपुर तत्र देवादि भक्तिमान् मगनलाल कक्कल दोशी योग्य धर्मलाभ वांचशी तमारो पत्र मल्यो छे. घी संबंधि प्रश्न जाण्या प्रतिक्रमण संबंधि तथा सूत्र संबंधि जे बोली थाय ते ज्ञान खातामा लेवी व्याजबी छे, सुपन संबंधि धोनी उपजनो स्वप्न बनावबां पार| वनाव, विगेरेमां खरच करवो व्याजबी छ. वाकीना पइसा देवद्रव्यमा लेवानी रीति प्रायः सर्व ठेकाणे मालम पडे छे. उपधानमां जे उपज थाय ते ज्ञान खाते तथा केटलीक नाणां विगेरेनी उपज देवद्रव्यमां जाय छे विशेष तमारे त्यां महाराजश्री हंसविजयजी महाराज वीराजमान छ तेओश्रीने पूछेशो. एक गावनो संघ कल्पना करे ते चाली शके नही. साधु साध्वी श्रावक श्राविका मली चतुर्विध संघ जे करवा धारे ते करी शके. आज काल साधारण खातामां विशेष पइशो न होबाथी केटलाक गाममां स्वप्न विगैरेनी उपज साधारण खाते लेवानी योजना करे छे परन्तु मारा धार्या प्रमाणे ते ठीक नथी. देवदर्शन करतां याद करशोः" । श्रीमान् विजयधर्म सूरिजीने काशी ( बनारस) में बहुत अभ्यास किया, दुनिया में फिर करके आये, बहुत शास्त्र व युक्तिवाद देखा. पहिले स्वप्न के द्रव्य को देवद्रव्य कहते थे अब अपने पहिलेके विचारों को बदल कर कल्पना मात्र से उसी द्रव्य को देवद्रव्य साथ संबंध नहीं ' रखने का कह कर साधारण खाते में लेजाने का लिखते हैं, भोले लोगों

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