Book Title: Dev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Author(s): 
Publisher: Muni Manisagar

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Page 46
________________ पर विरोध (विसंवाद ) आने का विचार भूलकर लिखते हैं कि... पूजा आरतीका चढावा क्लेश निवारण के लिये है. उस द्रव्य के साथ भगवान् का कोई संबंध नहीं है वो देवद्रव्य नहीं हो सकता. इस लिये साधारणखातमें लेजावो उससे दुःखी श्रावक-श्राविकादिकके उपयोगमें आ सके. ऐसा लिखकर भोले जीवोंके पूजा, आरती वगैरहके चढावेपरसे भाव उतार दिये, भगवान् की भक्ति में अंतराय किया, देवद्रव्य की आवक में बडा भारी धक्का पहुंचाया, ऐसी प्ररूपणा से हजारों लोग संशय में गिर गये हैं. इसलिये बहुत लोगोंने चढावा बोलने का बंध कर दिया है. कदाचित् कोई बोलते हैं तो देते भी नहीं हैं उससे वो पापमें डूबते हैं. भविष्य में द्रव्यके अभावसे मंदिरों में पूजा आरती होना भी मुश्किल होगा. विजयधर्मसूरिजी अपनी यह बड़ी अनर्थ की करनेवाली प्ररूपणा को साबित कर सकते नहीं. पाछी खींचकर समाज की समाधानीभी करते नहीं और उन से इस बात का शास्त्रार्थ से खुलासा पूछनेवालों पर गालागाली, निंदा ईर्षा से समाज में क्लेश फैलाते हैं. तथा अपनी झूठी प्ररूपणाके पक्षमें भोले लोगोंको लानेके लिये पूजा आरती आदि चढावेके रिवाज को असुविहित अर्थात् अगीतार्थ अज्ञानियोंका चलाया हुआ ठहरा कर सुविहित गीतार्थ कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचंद्राचार्य वगैरह महाराजाओं की व तपगच्छ खरतरगच्छादि सर्व गच्छों के हजारों प्रभाविक पूर्वाचार्यों की तथा अभी सर्व गच्छोंके आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधुमंडलकी बड़ी भारी आशातना कररहे हैं. और पूर्वाचार्योंके आचरणाकी बांतको उडाकर आगम पंचांगों के नाम से बाल जीवों को बहकाते हैं. देखो शासन को लाभकारी सर्व संघ सम्मत गौतार्थ पूर्वाचार्योंकी आचरणाको न माननेवालों को या उत्थापन करनेवालों को तंपगच्छ नायक श्रीमान् · देवेंद्रसूरिजी . महाराज विरचित 'धर्मरत्न प्रकरण वृत्ति ' वगैरह शास्त्रों में मिथ्या दृष्टि निन्हव कहा है. विजयधर्म सूरिजीने गरीब श्रावकोंको देवदन्य

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