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झूठी बातें लिखकर अपने दुराग्रह को छोडा भी नहीं. तवं उसपर संघके आगेवान् गृहस्थ तर्फ से एक सूचना पत्र प्रकट हुआ वह यह है:श्रीमान विद्याविजयजी महाराज,
___ आपके ज्येष्ठ वदी २ के हेंडबिल को देखकर हमें अत्यन्त आश्चर्य व खेद हुआ क्यों कि आप उस में लिखते हैं कि विचारे मणिसागरजीने कुछ गृहस्थों के हस्ताक्षर करवाकर तारीख १०-५-२२ को एक हेंडबिल निकाला है. महात्मन्, तो क्या आप यह बात सप्रमाण साबित कर सकते हैं कि श्रीमान् मणिसागरजी महाराजने ही गृहस्थों से हस्ताक्षर करवाकर वह हेंडबिल निकाला है ? ... आप लिखते हैं कि इन्दोर के कुछ गृहस्थों के हस्ताक्षर से ही तारीख १०-५-२२ का हेंडबिल छपा है उस में एकाध आगेवान् के सिवाय अन्य किसी आगेवान की सही नहीं है तो क्या हेंडबिल पर सही करनेवाले गृहस्थ संघ में नहीं कहला सकते? यदि कहला सकते हैं तो क्या उनकी प्रार्थना मानने योग्य नहीं हैं ?
आप के हेडबिल पर से साफ जाहिर होता है कि संघकी व्याख्या में धनी मानी लोगोंका ही समावेश हो सकता है अन्य का नहीं तो . क्या यह बात शास्त्रोक्त और प्रमाण भूत है ? . :: :
आपने जो पहला हेंडबिल अनुचित भाषा में वैशाख सुदी १०. को निकाला है उस में जिन जिन आगेवान गृहस्थों के नाम लिखे हैं. उनकी सम्मति आपने अवश्यही ली होगी ऐसा हमें पूर्ण विश्वास है.. ''आप लिखते हैं कि आचार्य श्रीविजयधर्मसूरिजी महाराज जैन धर्म की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति देनेको तैयार रहते हैं और जिन्होंने राजा महाराजाओं को प्रतिबोध कर जैन धर्म के प्रति अनुराग बढाया है, ऐसे परमोपकारी आचार्य महाराज से हमारा नम्र निवेदन है