Book Title: Dev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Author(s): 
Publisher: Muni Manisagar

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ ठहराव का भी भंग किया तब उसपर इन्दोर के निवासियोंने जाहिर रूप में रात्रि को वजार में सहीयें करवाई हैं यह बात तो प्रकटही है जिस पर भी मेरेपर सही करवाने का आरोप रखते हैं, यह भी आपका नवमा मृपा वाद ही है. १०. इन सब बातों में यदि विद्याविजयजी सत्यवादी हो तो२४ घंटेमें पूरा पूरा खुलासा प्रकट करें. नहीं तो लोकलज्जा छोडकर अपने मृषावाद का जाहिर रूप में मिच्छामि दुक्कडं देकर शुद्ध होवें व अपनी आत्माको निर्मल करें. और यदि शास्त्रार्थ करना चाहते हो तो अपने गुरु महाराज की सही लेकर जाहिर में आवें. फिर पीछे से झूठा झूठा छपवा कर अपनी इज्जत रखनेके लिये प्रपंचबाजीसे भोले लोगोंको भरमानेका धंधान ले बैठे. मैं यह विज्ञापन छपवाना नहीं चाहता था मगर आपने दो हेंडविल छपवाकर उस में बहुत अनुचित शब्द लिखे तथा झूठी झूठी बातें लिखकर वहुत लोगोंको संशय में गेरे, इसलिये उन्हों की शंका दूर करनेके लिये मेरेको इतना लिखना पडा है संवत् १९७९ ज्येष्ठ वदी ९. मुनि-मणिसागर, इन्दोर. . इस विज्ञापन पत्र का कुछभी जवाव दिया नहीं, अपने नो (९) मृषावादों को सत्य सावित कर सके नहीं व उन भूलों का जाहिर रूप : में मिच्छामि दुकडं देकर अपनी आत्माको निर्मल भी किया.. नहीं और अपने गुरुमहाराजकी सही लेकर , शास्त्रार्थ भी किया नहीं, चुप. होकर कल रोज यहांसे विहार करगये, उस पर से उनकी आत्मा में सत्यता, निर्मलता व शास्त्रार्थ करने की कैसी योग्यता है, उस बातका विचार ऊपर के सब लेखसे सर्व संघ आप ही कर लेवेगा. . .. : . और संघकी विनंती को मान नहीं दिया व अपनी प्रत्यक्ष भूल: का भी स्वीकार नहीं किया व ज्येष्ठ वदी २ के अपने हेंडबिल में झूठी

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96