Book Title: Dev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Author(s): 
Publisher: Muni Manisagar

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Page 32
________________ ३१ ६ मेरे साथ शास्त्रार्थ करने का मंजूर कर लिया उसके लिये ही जल्दी से इन्दोर बुलवाया. अब अपनी ४ पत्रिकाओं की खोटी खोटी वातों को शास्त्रार्थ में साबित करने की हिम्मत नहीं और अपनी प्ररूपणा को पीछी खींचकर सर्व संघसे मिच्छामि दुक्कडं देते भी लज्जा आती है. इसलिये योग्यता अयोग्यता के नाम से मुंह छुपाकर शास्त्रार्थ से पीछे हटकर क्यों भगते हो. पहिले शास्त्रार्थ मंजूर करती वक्त आपकी बुद्धि किस जगह शक्कर खाने को चलीगई थी. अब योग्यता अयोग्यता का व यहांके शांत स्वभावी भले संघ का और गालियांका सरणा लेकर अपनी झूठी इज्जत का बचाव करने के लिये भागे जा रहे हो, यही आपकी बहादुरी जग जाहिर होगी. " ७ बार बार अपनी योग्यता के अभिमान की बात लिखते थोडा विचार करो. देवद्रव्यको भक्षण करके अनंत संसार बढानेवाली, भोले जीवों को भगवान् की पूजा आरती के चढ़ावे की भक्ति में अंतराय करनेवाली, देवद्रव्य के लाखों रुपयों की आवक को नाश करनेवाली, 'हजारों लोगों को संशय में गेरनेवाली, भविष्य में मंदिर, मूर्ति, तीर्थक्षेत्रों की बडी भारी आशातना करनेवाली, और अपने पद की साधुपने . . की मर्यादा छोडकर गालियों से शासन की हिलना करानेवाली व अपने · - पुष्ट करनेवाली, ऐसी आपकी समाज में से किसीको भी ऐसी. यही देव गुरु व शासन रक्षक देवों दुराग्रहको अभिनिवेशिक मिथ्यात्व से योग्यता आपके पासही खखा, जैन योग्यता का अंशमात्र भी मत हो, से मेरी प्रार्थना है. . * शास्त्रार्थ से फल क्या और हारनेवाले को दंड क्या ? : ८ शांतिपूर्वक न्याय से शास्त्रार्थ होकर निर्णय हो जावे तो हजारों लोगों की शंका मिटे, समाज का क्लेश मिटे, देवद्रव्य की आवक रूकी है सो आवेगी, देवद्रव्य के भक्षण के पाप से समाज बचेगा, देवद्रव्यकी

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