Book Title: Dev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Author(s): 
Publisher: Muni Manisagar

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Page 31
________________ २ मैं वैशाख सुदी ९ के रोज आपके स्थानपर शास्त्रार्थ करने के लिये आनेको तयार था. मगर मेरे वै. शु. ८ के पत्र में लिखे प्रमाणे नियमानुसार आपने अपनी सही भेजी नहीं. और मकान के मालिक के पाससे भी सही भिजवाइ नहीं, चुप बैठगये. और अब अपनी कमजोरी छुपाने के लिये गालियोंका धंधा ले बैठे, खैर अभीभी उस करार मुजब आप सही भेजिये और मकान के मालिकके पाससेभी सही भिजवाइये तथा ४ साक्षियों मेंसे दो साक्षी के नाम आप लिखें. तो मैं दूसरी वक्त फिरभी दो साक्षी लेकर पूर्णिमा को आपके ठहरने के स्थानपर शास्त्रार्थ करने के लिये आनेको तयार हूं. " ३ यह सामाजिक विवाद है इसमें गच्छ भेदका कोई संबंध नहीं है. देव द्रव्यके शास्त्रार्थ करनेकी शक्ति न होनेसे गच्छ के नामसे लोगोंको बहकाना यहभी सर्वथा अनुचित ही है. ४ चुप हुए, मौनी पूर्णिमा को आपके' प्रथम जाहिर शास्त्रार्थ करनेमें चुप हुए, दूसरी वक्त वैशाख सुदी ९ के रोज आपके स्थानपर शास्त्रार्थ करनेमेंभी महात्मा बन गये.? अब तीसरी वक्त फिरभी मैं तो स्थानपर आनेको तयार हूं : नियमानुसार २४ घंटे में अपनी सही जलदी भेजिये. अवसर पर मौन करके बैठना और पीछे गालियोंका सरणा लेकर भागियेगा नहीं." . 1 1. ५ इस शास्त्रार्थ में संघ की सम्मति लेनेकी आड लेनाभी फजूल है. क्योंकि यहां के संघ के आगेवान् तो खुलासा कहते हैं कि शास्त्रार्थ के लिये हमने बुलवाया नहीं है. हमारी सलाह लिये . बिनाही अपनी मरजीसे शास्त्रार्थ' करनेका स्वीकार करके पत्र लिखकर बुलवाया है. अब . हमारा नाम बीच में क्यों लेते हैं, अपनी शक्ति हो तो शास्त्रार्थ करें नहीं तो चुप बैठें, 1 "

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