Book Title: Dev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Author(s): 
Publisher: Muni Manisagar

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Page 27
________________ लिखा था. पर्युषणा का शास्त्रार्थ संबंधी वातको देवद्रव्य के शास्त्रार्थ में लाकर भोले जीवोंको माया वृत्ति से बहकाना छोड़ दीजिये, विशेष क्या लिखें. संवत् १९७१ वैशाख शुदी २. मुनि-मणिसागर, इंदोर. - इस पत्र के जवाब में उनका पत्र आया वह यह है:श्रीयुत् मणिसागरजी, .. 'वै. शु. १ के दिन संघके आगेवान गृहस्थों के समक्ष तुम्हारे गुरुजीने स्वीकार किया था कि संघके आगेवान गृहस्थों के समक्ष आप और हम देवद्रव्य संबंधी वाद-विवाद करें. उसमें यदि संघ जाहिर शास्त्रार्थ के लिये आपकी हमारी योग्यता देखेगा, तो अपनी इच्छानुसार प्रबंध करेगा. अब आपको सूचना दी जाती है कि आपके गुरुने मंजूर किये अनुसार आप अपनी योग्यता दिखाना चाहते हैं तो वै. शु. ९ शुक्रवार के दिन दुपहरको १ बजे शेठ घमडसी जुहारमल के नोहरेमें आवें. और उस समय 'आने के लिये आपभी संघके आगेवानों को सूचना करें. इंदोर सिटी वैशाख सु. ७, २४४८.. . विद्याविजय. ऊपरके इस पत्रमें ४ साक्षी बनाने की बातको उडादी. शास्त्रार्थ करने वाले आप या अन्य किसी मुनिका नाम लिखा नहीं. अपनी तरफसे दो साक्षी के नामभी लिखे नहीं. शास्त्रार्थ करनेवाले का नाम बताये विना तथा दो साक्षी नेमे विना मैं उनके स्थानपर जाकर किसके साथ विवाद करूं और न्याय अन्याय का व सत्य असत्य का फैसला कौन. देवे. इस बातका खुलासा होने के लिये मैंने वैशाख सुदी. ८ के रोज उनको पत्र भेजाथा उसकी नकल यह है. . . . . . श्रीमान्-विजय धर्म सूरिजी-पत्र आपका मिला. १ .. सत्य ग्रहण करनेका, झूठका मिच्छामिदुक्कडं देनेका, शास्त्रार्थ करनेवाले मुनिका नाम और आपकी तर्फ से दो साक्षी के नाम जाहिर.

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