________________
88.1
Nataka
107
स्वादुक्षीरनतोधसः प्रतिदिनं गावो निरस्तापदः .........
संतः शांतिपरा भवंतु कृतिनः सौजन्यभाजो जनाः हाते निष्क्रांताः सर्वे द्वितीयसंधिः इति श्रीकविशेखराचार्यश्रीज्योतिरीश्वरविरचितं धूर्तसमागमाभिधं प्रहसनं समाप्तं श्रीहरिः संवत् १९४०
फाल्गुण कृष्ण ३० भौमवासरे श्रीहरिः श्री श्री References.- I Mss-Aufrecht Catalogus Catalogorum, i 27203;
ii 59.
For details cf. A. S. B. Des. Cat. Vol. VII No. 5341.,
नटकमेलन
Natakamelana
No.88
408.
1887-91. Size.- 9 in. by 3} in. Extent.- 20 leaves ; 7 lines to a page; 32 letters to a line. Description.- Country paper : Devanagari characters; old in ap
pearance; hand-writing clear and legible but not uniform'; portion on many folios scratched out; borders ruled in triple black lines ; edges of folios damaged ; fol. I missing ; red pigment used.
Another name for this work is लटकमेलन. Ago.-- Samvat 1608. Author.-- Sankhadhara. Subject.-- A Prahasana enacted before Govindadeva. . . .. Begins.- ( abruptly ) fol. 24
मंडलिकाधिराजः । कविप्रियो नाटकनर्तनार्थमादेशयन्मां रणरंगमल्लः ॥ यदद्य वसत्तसमयसमुचितेन कविराजश्रीशंखधरविरचितेन नटकमेलनाम्ना प्रहसनेनास्मात्विनोदयति । etc. fol. 13 लज्जाविक्रयो नाम प्रथमोकः ॥ छ ।