Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 14
Author(s): Parshuram Krishna Gode
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 249
________________ 228 Nataka [187. मृच्छकटिकवृत्ति Mrcchakatikavrtti 149.. No. 187 1866-68. Size.- I2g in. by 5 in. Extent.— 30 leaves ; 11 lines to a page ; 45 letters to a line. Description.- Modern paper with water-marks; Devanagari ch aracters; blue in appearance; hand-writing clear, legible and uniform ; yellow pigment used only in one or two places for correctious; complete ; the Ms is a bound copy. Age.- A modern copy. Author.-Prthvidhara. Subject.- A short commentary containing explanations of difficult words and passages in the Mșcchakatika of Sūdraka. Begins.- fol. 10 ॥श्रीगणेशाय नमः॥ सृच्छकटिकप्रकरणे यहुर्बोधं पदं किंचित् ॥ विवृत्ति)तस्य स्वधिया क्रियते सद्भिर्विलोकनीयैषा ॥१॥ प्रकरणं चेदं ॥ तथा च तल्लक्षणं ॥ यत्र कविरात्मबुध्या वस्तुशरीरं च नायकं चैव ॥ विरचयति समुत्पाद्य तत् ज्ञेयं प्रकरणं नाम ॥ चतस्रो वृत्तयः पंचसंधयोष्टरत्याहयः॥ प्रकरणत्वात्प्रसिद्धनायकं विहाय कल्पितवणिकनायक। विविधाश्च्यात्र रसाः॥etc. fol. II' इति महोपाध्यायश्रीपृथ्वीघरकृतसृच्छकाविवृतौ न्यासायेणो नाम प्रथमोकः॥छ। fol. 14° पूतकसंवाहको नाम द्वितीयोंकः॥ Ends.- fol. 300 किं एतत्किमेतदिति शत्रणां क्रूरः कलकलः पुस्तकांतरपाठदर्शनव्याख्या अहमेवेति पर्यवस्थापनमाचार इति कृत्वा स्वयमेव क्षमोहमिति भावः दिउणतलद्विगुणतर: अचलां पृथ्वीं॥ ॥मृच्छकटीकविवृत्तिरियं गणपतिचितांतपारपर्यंता पृथ्वीधरकृतिरुपनयतु संतोषं कृति समुद्रे ॥ ॥ इति श्रीरामदेवकारिता सृच्छकटी(क)वृत्ति समाप्तः। छ । References.-IMss-Aufrecht, i465; ii, 1070. -

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