Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 14
Author(s): Parshuram Krishna Gode
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
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.188.]
Nafaka
229
मृच्छकटिकटीका
Mrccha katikatika No. 188
150.
1866-68. Size.- 121 in. by 73 in. Extent.-- 14 leaves; 19-20 lines to a page ; 45 letters to a line. Description.-- Modern paper; Devanagari characters%3; hand-writ
ing, small but very clear, legible and uniform ; borders ruled in double black lines; considerable portion of one side of folios moth-eaten ; the Ms is a bound copy; com
plete; incorrect. Author.-A modern copy. Begins.- fol. 10
॥ श्रीगणेशाय नमः॥ शेसपी पौडजीवातुर्विवर्तिर्मुच्छकेटके। पृथ्वीधरैश्चिकादिगणेशो गण्यते शुरुः॥ तथा बालानां मुखबोधाय पुरूणां वचनं शुमं॥ लिख्यते गहनेऽप्यत्र हेरम्बावनतिस्थिरैः॥
प्रकरणं चेदं etc. as in No. 187 fol. 6° इति महोपाध्यायश्रीपृथ्वीधरकृत मृच्छकटिकाविवृतौ न्यासा
य॑णो नाम प्रथमोंक ॥ छ॥
fol. 8 यूतिकरसंवाहको नाम द्वितीयोंकः ॥ छ । Ends.- fol. IA
___ जयति सर्वगुतकर्षणेन बर्द्धतां तनुजयति आत्मसात करोति शेषभूतां पुष्यदायमानां गुणभूतामिति केचित् । पुस्तकांतरपाटदर्शनव्याख्या । आचार इति कृत्वा स्वयमेव मोहं इति भावः दिष्ट्या भो इति प्रहर्षिायामूढाकारे गुष्टिकारंवति सृष्टं दत्तं । एवं वटमित्यर्थस्तु विउनदयं । विराणतरा अवला पृथ्वी ॥
मृच्छकटिकविवृतिरियं गणपतिचिंतामपारपर्यंता । पृथ्वीधरकृतिनुपतनयतु संतोपं कृति समुदे ॥छ ॥छ॥ .
इति स महोपाध्यायश्रीपृथ्वीधरकृतमृच्छकटिकविवृतौ दशमांक ॥
छ॥ इति मिथिलाधिपतिश्रीमद्रामींसहदेवं ॥छ॥ ॥छ॥ References,- See No. 187.
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